ईशवर ने मानव की सृष्टि श्रेष्ठ वृत्ति के आधार पर किया है, सही और ग़लत के बीच अंतर करने के लिए मानव में बुद्धि पैदा कर दी। जब मानवीय बुद्धि विफलता, असमर्थता, हवस और स्वार्थी का, बल्कि विरोधाभासी और इख्तेलाफ का शिकार होती है, परन्तु कुछ लोग किसी बात को अच्छा समझते हैं, उसी बात को दूसरे लोग बुरा समझते हैं, बल्कि एक ही मानव समय और स्थान के बदलने पर अपनी सोंच बदल देता है, तो जब मानवीय बुद्धि गुप्त घटनाओं अज्ञान बातों के ज्ञान और मानव के अंदर छिपी हुई चोज़ों के एहसास से शक्तिहीन है, तो यह प्रजापति ईशवर, उसका लक्ष्य, उसके करने या ना करने के आदेश के ज्ञान से बहुत ही ज्यादा शक्तिहीन होगी, और यह बात तो दूर की है कि कोई मानव सीधे ईशवर (अल्लाह) से मिले। ईशवर ने कहा और किसी आदमी के लिए मुम्किन नहीं कि खुदा उस से बात करे, मगर इल्हाम (के ज़रिए) से या पर्दे से या कोई फ़रिशता भेज दे, तो वह खुदा के हुक्म से जो खुदा चाहे इल्क़ा करे। बेशक वह बुलंद मर्तबा (और) हिक्मत वाला है। (अल-शुअरा, 51)
इसी कारण ईशवर ने अपनी अपनी प्राणियों में से पवित्र लोगों को अपना रसूल और नबी बना दिया, ताके यह पवित्र लोग ईशवर और उसके भक्तों के बीच सर्वश्रेष्ठ राजदूत का काम करें। ईशवर ने कहा खुदा फ़रिशतों में से पैग़ाम पहुंचाने वाले चुन लेता है और इन्सानों में से भी, बेशक खुदा सुनने वाला (और) देखने वाला है। (अल हज, 75)
जो मानवता को अपने ईशवर के पथ की ओर निर्देश करें, और उन्हें अंधकारी से निकाल कर प्रकाशवान की ओर लायें, और फिर रसूलों के आजाने के बाद मानवता के पास ईशवर के ख़िलाफ कोई सबूत न रहे। ईशवर ने कहा (सब) पैग़म्बरों को (खुदाने) खुशख़बरी सुनाने वाले और डराने वाले (बना कर भेजा था), ताकि पैग़म्बरों के आने के बाद लोगों को ख़ुदा पर इल्ज़ाम का मौक़ा न रहे और खुदा ग़ालिब हिक्मत वाला है। (अल-निसा, 165)
परन्तु मानव ही में से कुछ को रसूल बनाकर भेजना ईशवर का मानवता पर बहुत बडा अनुग्रह है, ताकि यह रसूल उनको फायदे की बातें बतायें और पवित्र बनायें। ईशवर ने कहा ख़ुदा ने मोमिनों पर बड़ा एहसान किया है कि उन में उन्हीं में से एक पैग़म्बर भेजे, जो उन को ख़ुदा की आयतें पढ़-पढ़ कर सुनाते और उन को पाक करने और (ख़ुदा की) किताब और दानाई सिखाते हैं और पहले तो ये लोग खुली गुमराही में थे। (आले इम्रान, 164)
अवश्य रूप से ईशवर का यह बहुत बडा अनुग्रह है कि उसने मानवता के लिए अपना रसूल भेजा, और यह भी अनुग्रह है कि वह रसूल उन्हीं में से है । ईशवर की ओर से आनेवाले रसूलों का यह अनुग्रह इस रूप में व्यक्त होता है कि वे ईशवर की पवित्र वाणी मानवता के सामने रखते हैं, ताकि वे उन्हें ईशवर की महत्वकांक्षा और उसके गुण बतायें, उन्हें देवत्व की सत्यता और विशेषता का वर्णन करें, फिर इसके बाद मानव को स्वयं अपने व्यक्तित्व, जीवन और संचलन के बारे में निर्देश करें। ये रसूल मानव को उस मार्ग की ओर बुलाते हैं जो उसको जीवित रखता है, उस राह की ओर निर्देश करते हैं, जिससे उसके मन और स्थिति में सुधार पैदा हो जाती है। ये रसूल उस स्वर्ग की ओर मानव को बुलाते है जिसकी चौड़ाई आकाश और पृथ्वी के समान है। यह सब इस अनुग्रह और उपहार के द्वारा मिलने वाला बहुत बडा सदाचार ही तो है। बल्कि ये रसूल मानवता को पवित्र बनाते हैं, उनके दर्जे बुलंद करते हैं। उनके मन, धारणा और भावनाओं को पवित्र बनाते हैं। उनके घर, मान मर्यादा और उनकी प्रार्थनाओं को पवित्र बनाते हैं। उनके जीवन, समाज और उनके प्रणाली को पवित्र बनाते हैं। और उन्हें मूर्ति पूजा, मिथक, किवदंती और ईशवर के साथ किसी को भागीदार मानने के सिद्धांत से पवित्र बनाते हैं। उनके जीवन में प्रोत्साहक ऐसे संस्कार, समारोह, आदतें और परंपरा से उन्हें पवित्र बनाते हैं जो स्वयं मानव और मानवता के हक़ में एक अपमान है। मानवता को नीच जीवन और जीवन को गंदा करने वाले संस्कार, परंपरा, चरित्र और अवधारणाओं से पवित्र बनाते हैं। अवश्य रूप से नीचता नीचता ही है, और हर नीचता अपने आप में अपवित्र और गंदी है, उसके लिए समय या स्थान की कोई आवश्यकता नही है। परन्तु जहाँ कहीं मानवीय मन देवत्व सिद्धांत से रिक्त होगा, तो उस मन पर धारणाएँ अपना शासन चलायेंगी। जहाँ कहीं देवत्व सिद्धांत से मिलने वाले धर्म से मन रिक्त होंगे, (जो उनके जीवन को नियमित करे) तो जीवन नीचता की अवश्य रूप से एक शक्ल ही होगा। परन्तु नीचता (चाहे वह प्राचीन हो या आधुनिक) से मानवता को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है, क्यों कि नीचता चाहे प्राचीन हो या आधुनिक अपने अंदर प्राचीन नीचता की सारी चारित्रिक और सामाजिक दुर्गुण रखती है, और इसी प्रकार से मानवीय जीवन के लक्ष्य का उदाहरण करती है, हालांकि भौतिक विज्ञान, औद्योगिक उत्पादन और संस्कृतिक विकास की अनगिनत सफलताएँ हुई हैं। और इससे पहले तो ये लोग खुली गुमराही में थे। (अल्-जुमुअह, 2)
सिद्धांत और धारणाओं की गुमराही, जीवन के उदाहरणों की गुमराही, लक्ष्य और दिशा की गुमराही आदत व व्यवहार की गुमराही, प्रणाली, स्थिति की गुमराही, चरित्र और समाज की गुमराही...