रसूलों का इतिहास: सामान्य परिचय

रसूलों का इतिहास: सामान्य परिचय

रसूलों का इतिहास: सामान्य परिचय

रसूलों पर विश्वास रखना

सारे लोग सीधे रास्ते पर चल रहे थे, फिर उनके बीच आपसी फूट पड़गयी, तो ईशवर ने अपने रसूलों को भेजा, ताकि ये रसूल लोगों को ज्ञान दें और उन्हें डरायें । वही तो है, जिस ने अ-पढ़ों में उन्ही में से (मुहम्मद को) पैग़म्बर (बनाकर) भेजा, जो उसके सामने उस की आयतें पढ़तें और उनको पाक करते और (खुदा की) किताब और हिक्मत सिखाते हैं और इस से पहले तो ये लोग खुली गुमराही में थे। (अल् जुमुअः 2)

लेकिन लोग रसूलों के संदेश को लेकर दो समूह में बँट गये, एक समूह ने रसूलों को सच्चा माना और उन पर विश्वास किया, दूसरे समूह ने रसूलों को झुठलाया, उनको और उनके लाये हुए संदेश का इंकार किया और ज़िद में आकर उनको सच न माना । (पहले तो सब) लोगों का एक ही मज़हब था। (लेकिन वे आपस में इख्तिलाफ़ करने लगे) तो खुदा ने (उनकी तरफ) बशारत देने वाले और डर सुनाने वाले पैग़म्बर भेजे और उनपर सच्चाई के साथ किताबें नाज़िल की, ताकि जिन मामलों में लोग इख्तिलाफ करते थे, उनका उनमें फ़ैसला कर दे। और इसमें इख्तिलाफ़ भी उन्हीं लोगों ने किया जिनको किताब दी गयी थी, बावजूद कि उनके पास खुले हुए हुक्म आचुके थे और यह इख्तिलाफ उन्होंने (सिर्फ़) आपस की ज़िद से (किया) तो जिस हक़ बात में इख्तिलाफ करते थे, खुदा ने अपनी मेहरबानी से मोमिनों को उस की राह दिखा दी और खुदा जिसको चाहता है, सीधा रास्ता दिखा देता है। (अल् बक़रः 213)

इन लोगों ने अपनी हवस के पीछे चलते हुए और घमंड करते हुए रसूलों का इंकार किया । तो जब कोई पैग़म्बर तुम्हारे पास ऎसी बातें लेकर आयें जिनको तुम्हारा जी नहीं चाहता था, तो तुम सरकश हो जाते रहे और (नबियों के) एक गिरोह को तो झुठलाते रहे और एक गिरोह को क़त्ल करते रहे। (अल् बक़रः 87)

ईशवर ने सारे रसूलों पर विश्वास (ईमान) रखने का आदेश दिया है। (मुसलमानों ।) कहो कि हम खुदा पर ईमान लाए और जो (किताब) हम पर उतरी, उस पर और जो (सहीफ़े) इब्राहीम और इस्माईल और इस्हाक़ और याकूब और उनकी औलाद पर नाज़िल हुए, उन पर और जो (किताबें) मूसा और ईसा को अता हुईं उन पर और जो और पैग़म्बरों को उनके परवरदिगार की तरफ से मिली, उन पर (सब पर ईमान लाये) हम उन पैग़म्बरों में से किसी में कुछ फ़र्क नहीं करते और हम उसी (खुदा-ए-वाहिद) के फरमाबरदार हैं। (अल् बक़रः 136)

ईशवर ने रसूलों पर विश्वास रखने वालों से इस जीवन और भविष्य जीवन में प्रसन्नता और सफलता का वादा किया है। इसी प्रकार से रसूलों का इंकार करने वालों से भविष्य जीवन से पहले पहले इसी जीवन में घाटे और अप्रसन्नता की धमकी दी है। परन्तु विश्वास रखने वालों के बारे में ईशवर ने यह कहा। और जो शख्स खुदा और उसके पैग़म्बर और मोमिनों से दोस्ती करेगा तो (वह खुदा की जमाअत में दाखिल होगा और) खुदा की जमाअत ही ग़लबा पाने वाली है। (अल् माइदः 56)

और ईशवर ने यह भी कहा (यानी) जो लोग ईमान लाते और जिन के दिल खुदा की याद से आराम पाते हैं (उन को) और सुन रखो कि खुदा की याद से दिल आराम पाते हैं। जो लोग ईमान लाए और नेक अमल किए, उन के लिए खुशहाली और उम्दा ठिकाना है। (अल् राद, 28-29)

ईशवर ने रसूलों के इंकार करने वालों के बारे में कहा (और) ऎसा ख्याल न करना कि काफ़िर लोग (हम को) ज़मीन में मग़्लूब कर देंगें, (ये जा ही कहां सकते हैं) इन का ठिकाना दोज़ख है और वह बहुत बुरा ठिकाना है। (अल् नूर, 57)

रसूलों के दुश्मन

हर रसूल और हर नबी के दुश्मन हुआ करते थे। ईशवर ने कहा । और इसी तरह हमने शैतान-इंसानों और जिन्नो-को हर पैग़म्बर का दुश्मन बनादिया था। वे धोखा देने के लिए एक दूसरे के दिल में मुलम्मा की बातें डालते रहते थे और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता, तो वे ऎसा न करते, तो उन को और जो कुछ ये गढ़ते हैं, उसे छोड़ दो। (अल् अनआम, 112)

फिर ईशवर के रसूलों का इन्कार करने वालों ने इनके साथ दुर्वयवहार किया, इन पर ज़ुल्म किया, इनके साथ उपहास किया और इनका मज़ाक उड़ाया। ईशवर ने कहा । और उन के पास कोई पैग़म्बर नहीं आता था, मगर वे उसका मज़ाक़ उड़ाते थे। (अल् हिज्र, 11)

ईशवर ने कहा और कोई पैग़म्बर उन के पास नहीं आता था, मगर वे उसका मज़ाक़ उड़ते थे। (अल् ज़ुख़रूफ, 7)

और ईशवर ने कहा और तुम से पहले भी पैग़म्बरों के साथ मज़ाक होता रहा है, सो जो लोग उन में से मज़ाक किया करते थे, उन को मज़ाक की सज़ा ने आ घेरा। (अल् अनआम, 10)

इसी प्रकार से इन लोगों ने अपने रसूलों को बहिष्कार करने की धमकी दी, या फिर उन्हें अपने धर्म को छोडने का विकल्प दिया। ईशवर ने कहा और जो काफ़िर थे उन्होंने अपने पैग़म्बरों से कहा कि (या तो) हम तुम को अपने मुल्क से बाहर निकाल देंगे या हमारे मज़हब में दाखिल हो जाओ। तो परवरदिगार ने उन की तरफ वह्य भेजी कि हम ज़ालिमों को हलाक कर देंगे । (इब्राहीम, 13)

यहाँ तक कि यह धमकियाँ हत्या के प्रयास तक पहुँच गयी । और हर उम्मत ने अपने पैग़म्बर के बारे में यही इरादा किया कि उसको पकड़ लें (ग़ाफ़िर, 5)

यानी उसकी हत्या करें, यहाँ तक कि उनमें से कुछ लोगों ने तो अपने रसूलों की हत्या भी की है। तो जब कोई पैग़म्बर तुम्हारे पास ऎसी बातें लेकर आये जिनको तुम्हारा जी नहीं चाहता था, तो तुम सरकश हो जाते रहे और (नबियों के) एक गिरोह को तो झुठलाते रहे और एक गिरोह को क़त्ल करते रहे। (अल् बक़रः 87)

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मारसेल ब्वोदर

फ्रेंच विचारक
एक ही मशाल से
मुहम्मद (स) के संदेश के अंतर्गत यह नही था के आप से पूर्व की जो धार्मिक किताबें हैं उनको गलत ठहराये। परन्तु उसको सच्छ मानना और उन आसमानी किताबों में जो परिवर्तन और उल्लंघन हुआ है उसका खंडन करना है। आप को पूर्व रसोलों की शिक्षा को हर प्रकार की उल्लंघन से साफ करने की, इनको विस्तार करने और इनको संपूर्ण करने की जिम्मेदारी दी गयी। ताकि ये शिक्षा सारे विश्व में रहने वाले मानवों के लिए हर युग और समय में स्वीकृत हो

फिर इसके बाद ईशवर ने इनकार करने वालों को तबाह व बरबाद कर दिया, और रसूलों के धर्मों का बोल-बाला करदिया, ईशवर ने कहा । ख़ुदा का हुक्म नातिक़ है कि मैं और मेरे पैग़म्बर ज़रूर ग़ालिब रहेंगे, बेशक खुदा ज़ोरावर (और) ज़बरदस्त है। (अल् मुजादलः 21)

और ईशवर ने कहाऔर अपने पैग़ाम पहुँचाने वाले बन्दों से हमारा वायदा हो चुका है, कि वही (ग़ालिब व) मंसूर (मदद किए हुए) हैं। (अल् साफ़्फ़ात, 171-172)

ईशवर ने अपने नबी और रसूलों को सुरक्षित रख लिया । और जो लोग ईमान लाये और डरते थे, उनको हम ने निजात दी। (अल् नम्ल, 53)

और ईशवर ने यह भी कहा और जो ईमान लाये और परहेज़गारी करते रहे, उनको हमने बचा लिया। (फुस्सिलत, 18)

हर नबी अपनी क़ौम और अपने समय के उपयुक्त वह संदेश लेकर आये जो उनके जीवन को सुधारे और उन्हें पवित्र बनाये। परन्तु जो किसी भी रसूल का इंकार करेगा, वह सब रसूलों का इन्कार करने वाले व्यक्ति के समान है। जो ईसा (अलैहिसलाम) पर विश्वास नहीं रखेगा, निशचित रूप से वह मूसा (अलैहिसलाम) पर भी विश्वास नहीं रखने वाला होगा । और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने ईसा के संदेश को ही दोहराया। ईशवर ने कहा और (ऐ पैग़म्बर ।) हम ने तुम पर सच्ची किताब नाज़िल की है, जो अपने से पहली किताबों की तस्दीक़ करती है और उन (सब) पर शामिल है, तो जो हुक्म खुदा ने नाज़िल फरमाया है, उस के मुताबिक़ उनका फैसला करना और हक़, जो तुम्हारे पास आचुका है, उस को छोड़कर उनकी ख्वाहिशों की पैरवी न करना। (अल् माइदः 48)

जो व्यक्ति मुहम्मद पर विश्वास नही रखता है निशचित रूप से वह ईसा पर भी विश्वास रखने वाला नहीं होगा। हर समय और सारी क़ौमों के लिए नबी और रसूलों में से किसी एक पर ईश देवत्व का अंत होना ज़रूरी था न कि किसी विशेष समय और विशेष क़ौम के लिये, वरना आकाश और पृथ्वी के प्रजापति और ईशवर की वही (रहस्योद्धाटन) की मदद के बिना मानवता नष्ट हो जाती। परन्तु मुहम्मद नबी और रसूलों के अंत में आने वाले रसूल हैं। ईशवर ने कहा । मुहम्मद तुम्हारे मर्दों में से किसी के वालिद नहीं है, बल्कि खुदा के पैग़म्बर और नबियों (की नबूवत) की मुहर (यानी उस को खत्म कर देने वाले हैं) और खुदा हर चीज़ को जानता है। (अल् अह़ज़ाब, 40)

तो मानवता का इतिहास समझा जाने वाला नबी और रसूलों का इतिहास क्या है ।

मानवता की सृष्टि

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बशीर शाद

भरतीय ईसाई धार्मिक कार्यकर्ता
हम उन (रसूलोंके) बीच कोई अंतर नही रखते।
खुराने करीम ही वह एक दिव्य किताब है जो दूसरे आसमानी किताबों को मान्यता देती है। जब कि हम यह देखते हैं कि दूसरी सारी किताबें एक दूसरे को स्वीकार नही करती है।

हम यहाँ पर ईशवर के मानव की सृष्टि का इरादा करने से लेकर आदम (अलैहिसलाम) के स्वर्ग से निकल कर पृथ्वी पर आने तक का इतिहास का वर्णन करेंगे । और (वह वक़्त याद करने के क़ाबिल है) जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से फ़रमाया कि मैं ज़मीन में (अपना) नायब बनाने वाला हूँ। उन्होंने कहा, क्या तू उसमें ऐसे शख्स को नायब बनाना चाहता है, जो ख़राबियाँ करें और कुश्त व खून करता फिर और हम तेरी तारीफ के साथ तस्बीह व तक़्दीस करते रहते हैं। (खुदा ने) फ़रमाया, मै वह बातें जानता हूँ जो तुम नही जानते। और उसने आदम को सब (चीज़ों के) नाम सिखाये, फिर उनको फ़रिश्तों के सामने किया और फरमाया कि अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ। उन्होंने कहा, तू पाक़ है जितना इल्म तूने हमें बख्शा है, उसके सिवा हमें कुछ मालूम नहीं। बेशक तू दाना (सर्व ज्ञाता) (और) हिक्मत वाला है। (तब) ख़ुदा ने (आदम को) हुक्म दिया कि आदम। तुम इन को उन (चीज़ों) के नाम बताओ । जब उन्होंने उनको उनके नाम बताये तो (फ़रिश्तों से) फ़रमाया, क्यों, मैंने तुमसे नहीं कहा था कि मैं आसमानों और ज़मीन की (सब) पोशीदा बातें जानता हूँ और जो तुम ज़ाहिर करते हो और जो पोशीदा करते हो (सब) मुझको मालूम है। और जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम के आगे सज्दा करो तो वे सब सज्दे में गिर पड़े, मगर शैतान ने इंकार किया और ग़ुरूर (घमण्ड) में आकर काफ़िर बनगया । और हमने कहा कि ऐ आदम। तुम और तुम्हारी बीवी जन्नत मे रहो और जहां से चाहो, बे-रोक-टोक खाओ (पीयो), लेकिन उस पेड़ के पास न जाना, नहीं तो ज़ालिमों में (दाख़िल) हो जाओगे। फिर शैतान ने दोनों को वहाँ से फिसला दिया और जिस (ऐश व निशात) में थे, उससे उनको निकल वा दिया। तब हमने हुक्म दिया कि (जन्नत से) चले जाओ, तुम एक-दुसरे के दुश्मन हो और तुम्हारे लिए ज़मीन में एक वक़्त तक ठिकाना और मआश (रोज़ी) मुक़र्रर कर दिया गया है। फिर आदम ने अपने परवरदिगार से कुछ कलिमात (बोल) सीखे (और माफी मांगी) तो उसने उनका क़ुसूर माफ कर दिया। बेशक वह माफ़ करने वाला (और) रहम वाला है। हमने फ़रमाया कि तुम सब यहाँ से उतर जाओ। जब तुम्हारे पास मेरी तरफ से हिदायत पहुँचे तो (उसकी पैरवी करना कि) जिन्होंने मेरी हिदायत की पैरवी की, उनको न कुछ ख़ौफ होगा और न वे ग़मनाक होंगे। और जिन्होंने (उसको) क़ुबूल न किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वे दोज़ख़ में जाने वाले हैं (और) वे हमेशा उसमें रहेंगे । (अल् बक़रः 30-39)

फिर जब लोगों में आपसी वैर हो गया, और वे सीधे पथ और सच्चे संदेश से दूर हो गये, तो ईशवर ने अपने रसूलों को भेजा, फिर लगातार रसूल अपने अपने संदेश लेकर आते रहे । उस ने तुम्हारे लिए दीन का वही रास्ता मुक़र्रर किया, जिस (के अपनाने) का नूह को हुक्म दिया था और जिस की (ऐ मुहम्मद ।) हम ने तुम्हारी तरफ़ वह्य भेजी है और जिसका इब्राहीम और मूसा और ईसा को हुक्म दिया था, (वह यह) कि दीन को क़ायम रखना और उस में फूट न डालना । (अल् शूरा, 13)

ईशवर के नबी और रसूल इद्रीस (अलैहिसलाम) से लेकर नूह (अलैहिसलाम) तक, फिर इब्राहीम, इस्माईल, मूसा, ईसा और मूहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तक लगातार आते रहे। ईशवर ने इन सारे नबी और रसूलों के बारे में, और उनके क़िस्से वर्णन किया। हम यहाँ पर इन में से कुछ रसूलों के कुछ भाग लिखेंग, इसलिए कि इन किस्सो में बुद्धिमान लोगों के लिए नसीहत है। ईशवर ने कहा उनके क़िस्से में अक़्लमंदों के लिए सबक़ है। यह (ख़ुरआन) ऐसी बात नही है जो (अपने दिल से) बनाली गयी हो, बल्कि जो किताबें इस से पहले (नाज़िल हुई) हैं, उन की तस्द़ीक (करने वाला) है और हर चीज़ की तफ्सील (करने वाला) और मोमिनों के लिए हिदायत और रहमत है। (सूरे यूसुफ, 111)




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