बनी इस्राईल आपस में इब्राहीम अलैहि सलाम से चली आयी हुई बातों की चर्चा किया करते थे कि उनके संतान मे एक लड़का पैदा होगा, जिसके हाथों पर इजीप्ट के राजा का विनाश होगा । यह ख़बर बनी इस्राईल के बीच प्रसिद्ध थी । इजीप्ट के राजा के सामने उसके कुछ मंत्रियों ने इसका चर्चा किया, तो उसी समय इस लड़के के पैदा होने के डर से राजा (फिरऔन) ने बनी इस्राईल के सारे नवजात लड़कों की हत्या करने का आदेश दिया । राजा के ज़ुल्म और अन्याय से बनी इस्राईल का जीवन गुज़र रहा था । निस्संदेह फ़िरऔन ने धरती में सकरशी की और उसके निवासियों को विभिन्न गिरोहों में विभक्त करदिया । उनमें से एक गिरोह को कमज़ोर कर रखा था। वह उनके बेटों की हत्या करता और चाहता था कि उनकी स्त्रियाँ जीवित रहें । निश्चय ही वह बिगाड़ पैदा करनेवालों में से था। (अल-क़सस, 4)
तो ईशवर ने बनी इस्राईल के कमज़ोरों पर उपकार करने का निर्णय लिया और हम यह चाहते थे कि उन लोगों पर उपकार करें जो धरती में कमज़ोर पड़े थे और उन्हें नायक बनाएँ और उन्हीं को वारिस बनाएँ । और धरती में उन्हें सत्ताधिकार प्रदान करें और उनकी ओर से फ़िरऔन और हामान और उनकी सेनाओं को वह कुछ दिखाएँ जिसकी उन्हें आशंका थी। (अल-क़सस, 5-6)
हालांकि फ़िरऔन ने मूसा का जन्म न होने के लिए पूरी तरह एहतियात किया था, परन्तु उसने गर्भवती महिलाओं पर सुरक्षा कर्मियों को तैनात कर दिया था, जो उनके गर्भकाल के समय का ज्ञान रखते थे, और जो भी महिला लडके को जन्म देती थी, तो ये दरिंदे उसी समय लडके की हत्या कर देते थे, लेकिन ईशवर ने फ़िरऔन, हामान और उसकी सेना को उसी विषय से पीडित करना चाहा जिससे वह लोग डरते थे। जब मूसा की माँ ने जन्म दिया हमने मूसा की माँ को संकेत किया, उसे दूध पिला। फिर जब तुझे उसके विषय में भय हो तो उसे दरिया में डाल दे और न तुझे कोई भय हो और न तू शोकाकुल हो। हम उसे तेरे पास लौटा लाएँगे और उसे रसूल बनाएँगे। (अल-क़सस,7)
मूसा की माँ अपने बच्चे के बारे में सोंच सोंच कर भयभीत हो गयी, परन्तु उसने बच्चे को डिब्बे में रख दिया और समुद्र में फेंक दिया । अन्ततः फ़िरऔन के लोगों ने उसे उठा लिया ताकि परिणाम स्वरूप वह उनका शत्रु और उनके लिए दुख का कारण बने । निश्चय ही फ़िरऔन और हामान और उनकी सेनाओं से बड़ी चूक हुई । (अल-क़सस, 8)
फ़िरऔन की पत्नी के मन में मूसा के प्रति प्रेम उत्पन्न हुआ फ़िरऔन की स्त्री ने कहा कि यह मेरी और तुम्हारी आँखों की ठण्डक है। इसकी हत्या न करो, कदाचित यह हमें लाभ पहुँचाए या हम इसे अपना बेटा ही बनालें । और वे (परिणाम से) बेख़बर थे। (अल-क़सस, 9)
जहाँ तक मूसा की माँ की स्थिति का सवाल था, तो और मूसा की माँ का ह्रदय परिशून्य हो गया । निकट था कि वह उसको प्रकट करदेती, यदि हम उसके दिल को इस ध्येय से न संभालते कि वह मोमिनों में से हो। उसने उसकी बहन से कहा कि तू उसके पीछे-पीछे जा। अतएव वह उसे दूर ही दूर से देखती रही, और वे महसूस नहीं कर रहे थे। हमने पहले ही से दूध पिलानेवालियों को उसपर हराम कर दिया। अतः उसने (मूसा की बहन ने) कहा, क्या मैं तुम्हें ऐसे घरवालों का पता बताऊँ जो तुम्हारे लिए इसके पालन-पोषण का ज़िम्मा लें और इसके शुभ-चिंतक हों । इस प्रकार हम उसे उसकी माँ के पास लौट लाए, ताकि उसकी आँख ठण्डी हो और वह शोकाकुल न हो, और ताकि वह जानले कि अल्लाह का वादा सच्चा है, किन्तु उनमें से अधिकतर लोग जानते नहीं। (अल-क़सस, 10-13)
मूसा का पालन-पोषण तानाशाह फ़िरऔन के घर में हूआ और जब वह अपनी जवानी को पहुँचा और भरपूर हो गया तो हमने उसे निर्णय-शक्ति और ज्ञान प्रदान किया । और सुकर्मी लोगों को हम इसी प्रकार बदला देते हैं । उसने नगर में ऐसे समय प्रवेश किया जबकि वहाँ के लोग बेख़बर थे। उसने कहा दो आदमियों को लड़ते पाया । यह उसके अपने गिरोह का था और यह उसके शत्रुओं में से था । जो उसके गिरोह में से था उसने उसके मुक़ाबिले में, जो उसके शत्रुओं में से था, सहायता के लिए उसे पुकारा। मूसा ने उसे घूँसा मारा और उसका काम तमाम करदिया । कहा, यह शैतान की कार्रवाई है। निश्चय ही वह खुला पथभ्रष्ट करनेवाला शत्रु है। उसने कहा, ऐ मेरे रब, मैंने अपने आप पर ज़ुल्म किया । अतः तू मुझे क्षमा कर दे । अतएव उसने उसे क्षमा कर दिया। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है। उसने कहा, ऐ मेरे रब। जैसे तूने मुझ पर अनुकम्पा दर्शाई है, अब मैं भी कभी अपराधियों का सहायक नहीं बनूँगा। (अल-क़सस, 14-17)
लेकिन जब मूसा ने अपने और इस्राईली के दुशमन की हत्या कर दी फिर दूसरे दिन वह नगर में डरता, टोह लेता हुआ प्रविष्ट हुआ । इतने में अचानक क्या देखता है कि वही व्यक्ति जिसने कल उससे सहायता चाही थी, उसे पुकार रहा है। मूसा ने उससे कहा, तू तो प्रत्यक्ष बहका हुआ व्यक्ति है। फिर जब उसने इरादा किया कि उस व्यक्ति को पकड़े, जो उन दोनों का शत्रु था, तो वह बोल उठा, ऐ मूसा, क्या तू चाहता है कि मुझे मारडाले, जिस प्रकार तूने कल एक व्यक्ति को मार डाला? धरती में बस तू निर्दय अत्याचारी बनकर रहना चाहता है और यह नहीं चाहता कि सुधार करने वाला हो। इसके बाद एक आदमी नगर के परले सिरे से दौड़ता हुआ आया । उसने कहा, ऐ मूसा, सरदार तेरे विषय में परामर्श कर रहे हैं कि तुझे मार डालें। अतः तू निकल जा। मैं तेरा हितैषी हूँ। फिर वह वहाँ से डरता और ख़तरा भाँपता हुआ निकल खड़ा हुआ । उसने कहा, ऐ मेरे रब। मुझे ज़ालिम लोगों से छुटकारा दे। (अल-क़सस, 18-21)
मूसा “ईजिप्ट” से निकल कर “मदयन” की ओर निकल पडे । जब उसने “मदयन” का रुख़ किया तो कहा, आशा है, मेरा रब मुझे ठीक रास्ते पर डाल देगा । और जब वह मदयन के पानी (कुएँ) पर पहुँचा तो उसने उसपर पानी पिलाते लोगों का एक गिरोह पाया । और उनसे हटाकर एक ओर दो स्त्रियों को पाया जो अपने जानवरों को रोक रही थी। उसने कहा, तुम्हारा क्या मामला है ? उन्होंने कहा, हम उस समय तक पानी नहीं पिला सकते जब तक ये चरवाहे अपने जानवर निकाल न ले जाएँ, और हमारे बाप बहुत ही बूढ़े हैं। तब उसने उन दोनों के लिए पानी पिला दिया। फिर छाया की ओर पलट गया और कहा, ऐ मेरे रब, जो भलाई भी तू मेरी ओर उतार दे, मैं उसका ज़रूरतमंद हूँ। (अल-क़सस, 22-24)
इन दो स्त्रियों ने अपने पिता (ईशवर के नबी) शुऐब को मूसा के बारे में बताया, तो शुऐब ने अपनी एक लड़की को मूसा के पास भेजा । फिर उन दोनों में से एक लजाती हुई उसके पास आई । उसने कहा, मेरे बाप आपको बुला रहे हैं, ताकि आपने हमारे लिए (जानवरों को) जो पानी पिलाया है, उसका बदला आपको दें। (अल-क़सस, 25)
मूसा शुऐब के पास पहुँचे । फिर जब वह उसके पास पहुँचा और उसे अपने सारे हालात सुनाए तो उसने कहा, कुछ भय न करो। तुम ज़ालिम लोगों से छुटकारा पागए हो। (अल-क़सस, 25)
जब शुऐब की लड़की ने मूसा की अमानतदारी देखी तो । उन दोनों स्त्रियों में से एक ने कहा, ऐ मेरे बाप। इसको मज़दूरी पर रख लीजिए। अच्छा व्यक्ति, जिसे आप मज़दूरी पर रखें, वही है जो बलवान, अमानतदार हो। (अल-क़सस, 26)
शुऐब ने मूसा से यह कहा । उसने कहा, मैं चाहता हुँ कि अपनी इन दोनों बेटियों में से एक का विवाह तुम्हारे साथ इस शर्त पर करदूँ कि तुम आठ वर्ष तक मेरे यहाँ नौकरी करो। और यदि तुम दस वर्ष पूरे कर दो तो यह तुम्हारी ओर से होगा । मैं तुम्हें कठिनाई में डालना नहीं चाहता। यदि अल्लाह ने चाहा तो तुम मुझे नेक पाओगे। कहा, यह बात मेरे और आपके बीच तय हो चुकी है। इन दोनों अवधियों में से जो भी मैं पूरी करदूँ तो मुझ पर कोई ज़्यादती नहीं होगी। और जो कुछ हम कह रहे हैं उसके विषय में अल्लाह पर भरोसा काफ़ी है। (अल-क़सस, 27-28)
जब मूसा ने आपसी संझौते के अनुसार अपनी नौकरी की अवधि (8 वर्ष) पूरी करली, तो अपनी पत्नी को लेकर यात्रा प्रारंभ की । फिर जब मूसा ने अवधि पूरी कर दी और अपने घरवालों को लेकर चला तो तूर की ओर उसने एक आग-सी देखी। उसने अपने घरवालों से कहा, ठहरो, मुझे एक आग नज़र आई है। कदाचित मैं वहाँ से तुम्हारे पास कोई ख़बर ले आऊँ या उस आग से कोई अंगारा ही, ताकि, तुम ताप सको। (अल-क़सस, 29)
इस समय में मूसा को ईशवर की ओर से यह आदेश दिया गया । फिर जब वह वहाँ पहुँचा तो दाहिनी घाटी के किनारे से शुभ क्षेत्र में वृक्ष से आवाज़ आई, ऐ मूसा, मैं ही अल्लाह हुँ, सारे संसार का रब। और यह कि डाल दे अपनी लाठी। फिर जब उसने उसे देखा कि वह बलखा रही है, जैसे कोई साँप हो, तो वह पीट फेरकर भागा और पीछे मुडकर भी न देखा। ऐ मूसा । आगे आ और भय न कर। निस्संदेह तेरे लिए कोई भय की बात नहीं। अपना हाथ अपने गिरेबान में डाल। बिना किसी ख़राबी के चमकता हुआ निकलेगा । और भय के समय अपनी भुजा को अपने से मिलाए रख। ये दो निशानियाँ हैं तेरे रब की ओर से फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास लेकर जाने के लिए। निश्चय ही वे बड़े अवज्ञाकारी लोग हैं। (अल-क़सस, 30-32)
लेकिन मूसा ने कुछ समय पहले अपने दुशमन की हत्या की थी, और उनकी जिट्ठा में दोश भी था, इन्हीं दो कारणों से मूसा को फ़िरऔन से डर होने लगा था । उसने कहा, ऐ मेरे रब। मुझसे उनके एक आदमी की जान गई है। इसलिए मैं डरता हुँ कि वे मुझे मार डालेंगे। मेरे भाई हारून की ज़बान मुझसे बढकर धारा प्रवाह है। अतः उसे मेरे साथ सहायक के रूप में भेज कि वह मेरी पुष्टि करे। मुझे भय है कि वे मुझे झुठलाएँगे । (अल-क़सस, 33-34)
मूसा ने अपने भाई हारून को अपने लिए मददगार बनाने की ईशवर से प्रार्थना की । और मेरे लिए मेरे अपने घरवालों में से एक सहायक नियुक्त कर दे, हारून को, जो मेरा भाई है। उसके द्वारा मेरी कमर मज़बूत कर। और उसे मेरे काम में शरीक कर दे, कि हम अधिक से अधिक तेरी तसबीह करें, और तुझे ख़ूब याद करें। निश्चय ही तू हमे ख़ूब देख रहा है। कहा, दिया गया तुझे जो तूने माँगा, ऐ मूसा। (ता-हा, 29-36)
जब मूसा और उनके भाई फ़िरऔन के पास पहुँचे, तो अपने पास आया हुआ देवत्व संदेश को सामने रखते हुए एक ईशवर की प्रार्थना करने की ओर उसको बुलाया, जिसका कोई साझी नहीं है। उसको अपने ज़ुल्म, अन्याय से बनी इस्राईल के क़ैदियों को आज़ाद करने, उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार अपने रब की प्रार्थना करने, उन्हें अपने ईशवर के एकीकरण और उसकी विनती करने के लिए छोड़ दे। तो फ़िरऔन घमण्ड करने लगा, सरकशी पर उतर आया और मूसा की ओर अल्पीकरण और नीच निगाहों से देखते हुए यह कहा। (फ़िरऔन ने) कहा, क्या हमने तुझे, जब कि तू बच्चा था, अपने यहाँ पाला नहीं था ? और तू अपनी अवस्था के कई वर्षों तक हम में रहा, और तू ने अपना वह काम किया, जो किया। तू बडा ही कृतघ्न है। (अल-शुअरा, 18-19)
तो मूसा ने उन्हें यह जवाब दिया(मूसा ने) कहा, ऐसा तो मुझसे उस समय हुआ जब कि मैं चूक गया था। (अल-शुअरा, 20)
यानी देवत्व संदेश और धार्मिक नियम मेरे पास आने से पहले-पहले फिर जब मुझे तुम्हारा भय हुआ तो मैं तुम्हारे यहाँ से भाग गया। फिर मेरे रब ने मुझे निर्णय शक्ति प्रदान की और मुझे रसूलों में सम्मिलित किया । (अल-शुअरा, 21)
फिर मूसा ने पालन-पोषण के कारण फ़िरऔन के एहसान जताने पर यह उत्तर दिया यही वह उदार अनुग्रह है जिसका एहसान तू मुझपर जताता है कि तू ने इस्राईल की संतान को ग़ुलाम बना रखा है। (अल-शुअरा, 22)
यानी यह अनुग्रह जिसके अनुसार तू मुझ पर एहसान जता रहा है, जब कि मैं भी बनी इस्राईल का एक सदस्य हूँ, यह अनुग्रह तू ने बनी इस्राईल को जो ग़ुलाम बनाया है और अपनी सेवा, रक्षा के लिए उपयोग किया है, उसके बदले के समान है। फिर फ़िरऔन ने मूसा से उस ईशवर के बारे में प्रश्न किया, जिसकी ओर वह निर्देश करते हैं । फ़िरऔन ने कहा, और यह सारे संसार का रब क्या होता है?(अल-शुअरा, 23)
तो फ़िरऔन को यह संदेह रहित उत्तर मिला । (मूसा ने) कहा, आकाशों और धरती का रब और जो कुछ इन दोनों के मध्य है उसका भी, यदि तुम्हें यक़ीन हो। (अल-शुअरा, 24)
फ़िरऔन मज़ाक उड़ाने लगा । उसने (फ़िरऔन ने) आस-पास वालों से कहा, क्या तुम सुनते नहीं हो ? (अल- शुअरा, 25)
मूसा किसी की परवाह किये बिना अपना संदेश देते रहे । (मूसा ने) कहा, तुम्हारा रब और तुम्हारे अगले बाप-दादा का रब। (अल-शुअरा, 26)
फ़िरऔन अपनी सरकशी में बड़ने लगा । (फ़िरऔन) बोला, निश्चय ही तुम्हारा यह रसूल, जो तुम्हारी ओर भेजा गया है, बिल्कुल ही पागल है। (अल-शुअरा, 27)
लेकिन ईशवर के रसूल मूसा अपने मुद्दे से नहीं हटे । (मूसा ने) कहा, पूर्व और पश्चिम का रब और जो कुछ उनके बीच है उसका भी, यदि तुम कुछ बुद्धि रखते हो। (अल-शुअरा, 28)
बुद्धिमत्ता, सबूत और तर्क से खाली घमण्डी और तानाशाह फ़िरऔन ने धमकी देना प्रारंभ कर दिया । (फ़िरऔन) बोला, तुम ने यदि मेरे सिवा किसी और को हाकिम बनाया तो मैं तुम्हें बन्दी बना कर रहूँगा । (अल- शुअरा, 29)
जिस प्रकार से मूसा को मज़ाक और परिहास अपना संदेश पहुँचाने से रोक न सका, उसी प्रकार से धमकियाँ भी उन्हें रोक न सकी, परन्तु यह उत्तर दिया । (मूसा ने) कहा, क्या यदि मैं तेरे पास एक स्पष्ट चीज़ ले आऊँ तब भी ? (फ़िरऔन) बोला, अच्छा, वह ले आ, यदि तू सच्चा है । फिर उसने (मूसा ने) अपनी लाठी डाल दी, तो अचानक क्या देखते हैं कि वह एक प्रत्यक्ष अजगर है। और उसने (मूसा ने) अपना हाथ बाहर खींचा, तो फिर क्या देखते हैं कि वह देखनेवालों के सामने चमक रहा है। (अल-शुअरा, 30-33)
फ़िरऔन को यह भय होने लगा कि कहीं लोग मूसा पर विश्वास करने लगे। उसने (फ़िरऔन ने) अपने आस-पास के सरदारों से कहा, निश्चय ही यह एक बडा जादूगर है। चाहता है कि अपने जादु से तुम्हें तुम्हारी अपनी भूमि से निकाल बाहर करे, तो अब तुम क्या कहते हो ? उन्होंने कहा, इसे और इसके भाई को अभी टाले रखिए, और जमा करनेवालों को नगरों में भेज दीजिए कि वे हर एक माहिर जादूगर को आपके पास ले आएँ। (अल-शुअरा, 34-37)
फिर जब फ़िरऔन ने मूसा द्वारा सारे सबूत देख लिया, तो वह घमण्ड करते हुए इनको झुठलाया और इनका तिरस्कार किया । और हमने फ़िरऔन को अपनी सब निशानियाँ दिखाई, किन्तु उसने झुठलाया और इन्कार किया । उसने कहा, ऐ मूसा । क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि अपने जादु से हमको हमारे अपने भू-भाग से निकाल दे? अच्छा, हम भी तेरे पास ऐसा ही जादू लाते हैं। अब हमारे और अपने बीच एक निश्चित स्थान ठहराले, कोई बीच की जगह, न हम इसके विरुद्ध जाएँ और न तू। कहा, उत्सव का दिन तुम्हारे वादे का है, और यह कि लोग दिन चढ़े इकट्ठे हो जाएँ। तब फ़िरऔन ने पलटकर अपने सारे हथकण्डे जुटाए। और (मुक़ाबले में) आ गया। (ता-हा, 56-60)
मूसा को अपनी क़ौम पर दण्ड का भय हुआ । मूसा ने उन लोगों से कहा, तबाही है तुम्हारी, झूठ गढकर अल्लाह पर नथोपो कि वह तुम्हें एक यातना से विनष्ट कर दे, और झूठ जिस किसी ने भी गढकर थोपा वह असफल रहा। (ता-हा, 61)
यह लोग आपस में अंतर करनेलगे, और इनमें से एक ने यह कहा, यह किसी जादूगर की वाणी नहीं है। इसपर अपने मामले में उन्होंने परस्पर विचार विनिमय किया और चुपके-चुपके कानाफूसी की। (ता-हा, 62)
लेकिन वह लोग पुनरावृत्ति करने लगे, और उन्में से अधिक लोग यह कहने लगे कहने लगे, ये दोनों जादूगर हैं, चाहते हैं कि अपने जादु से तुम्हें तुम्हारे भू-भाग से निकाल बाहर करें, और तुम्हारी उत्तम और उच्च प्रणाली को तहस-नहस करके रख दें। अतः तुम सब मिलकर अपना उपाय जुटा लो, फिर पंक्तिबद्ध होकर आओ। आज जो प्रभावी रहा, वही सफल है। वे बोले, ऐ मूसा। या तो तुम फेंको या फिर हम पहले फेंकते हैं। कहा, नहीं, बल्कि तुम्ही फेंको। फिर अचानक क्या देखते हैं कि उनकी रस्सियाँ और उनकी लाठियाँ उनके जादु से उसके ख्याल में दौड़ती हुई प्रतीत हुई। (ता-हा, 63-66)
मूसा को यह भय हुआ कि कहीं जादुगर लोगों को धोखे में न डाल दें । और मूसा अपने जी में डरा। (ता-हा, 67)
और ईशवर की ओर से मूसा के पास यह संदेश आया। हमने कहा, मत डर। निस्संदेह तू ही प्रभावी रहेगा । और डाल दे जो तेरे दाहिने हाथ में है। जो कुछ उन्होंने रचा है वह उसे निगल जाएगा। जो कुछ उन्होंने रचा है, वह तो बस जादुगर का स्वांग है और जादुगर सफल नही होता, चाहे वह जैसे भी आए । (ता-हा, 68-69) हमने मूसा की ओर प्रकाश ना की कि अपनी लाठी डाल दे। फिर क्या देखते हैं कि वह उनके रचे हुए स्वांग को निग़लती जा रही है। इस प्रकार सत्य प्रकट हो गया और जो कुछ वे कर रहे थे, मिथ्या होकर रहा। (अल-आराफ़, 117-118)
और आश्चर्यक परिणाम यह रहा । अतः वे हार गए और अपमानित होकर रहे। और जादुगर सहसा सजदे में गिर पड़े। बोले, हम सारे संसार के रब पर ईमान ले आए, मूसा और हारून के रब पर। (अल-आराफ़, 119-122) अन्ततः जादुगर सजदे में गिर पडे। बोले, हम हारून और मूसा के रब पर ईमान ले आए । (ताहा, 70)
तो फ़िरऔन का उत्तर मूर्खता पर आधारित था । उसने कहा, तुमने मान लिया उसको, इससे पहले कि मैं तुम्हें इसकी अवज्ञा देता ? निश्चय ही यह तुम सबका प्रमुख है जिसने तुम्हें जादू सिखाया है। अच्छा, अब मैं तुम्हारे हाथ और पाँव विपरीत दिशाओं से कटवादूँगा और खजूर के तनों पर तुम्हें सूली देदूँगा । (ताहा, 71)
जादुगरों का जवाब फ़िरऔन के लिए आश्चर्य था, जो इस बात का वर्णन कर रहा था कि ईमान अपने भक्तों पर कैसे प्रभावित होता है? उन्होंने कहा, कुछ हरज नही, हम तो अपने रब ही की ओर पलटकर जानेवाले हैं। हमें तो इसी की लालसा है कि हमारा रब हमारी ख़ताओं को क्षमा कर दे, क्योंकि हम सबसे पहले ईमान लाए। (अल-शुअरा, 50-51)
फ़िरऔन ईमान वालों को सदा तकलीफ देता रहा, तो ईशवर ने उसको और उसके साथियों को दण्ड दिया और हमने फ़िरऔनियों को कई वर्ष तक अकाल और पैदावर की कमी में ग्रस्त रखा कि वे चेतें । फिर जब उन्हें अच्छी हालत पेश आती है तो कहते हैं, यह तो है ही हमारे लिए। और जब उन्हें कोई बुरी हालत पेश आए तो वे उसे मूसा और उसके साथियों की नहूसत (अपशकुन) ठहराएँ। सुन लो, उनकी नहूसत तो अल्लाह ही के पास है, परन्तु उनमें से अधिकतर लोग जानते नहीं। (अल-आराफ़, 130-131)
लेकिन वे न ईमान लाए और न तौबा की वे बोले, तू हम पर जादू करने के लिए चाहे कोई भी निशानी हमारे पास ले आए, हम तुझपर ईमान लानेवाले नही। अन्ततः हमने उनपर तूफ़ान और टिड़्डियाँ और छोटे कीडे मेंढक और रक्त कितनी ही निशानियाँ अलग-अलग भेजी, किन्तु वे घमण्ड ही करते रहे। वे थे ही अपराधी लोग। (अल-आराफ़, 132-133)
जब वे हिम्मत हार गए जब कभी उनपर यातना आ पड़ती, कहते, ऐ मूसा हमारे लिए अपने रब से प्रार्थना करो, उस प्रतिज्ञा के आधार पर जो उसने तुमसे कर रखी है। तुमने यदि हम पर से यह यातना हटा दी तो हम अवश्य ही तुमपर ईमान ले आएँगे और इस्राईल की संतान को तुम्हारे साथ जाने देंगें। किन्तु जब हम उनपर से यातना को एक नियत समय के लिए, जिस तक वे पहुँचनेवाले ही थे, हटा लेते तो क्या देखते कि वे वचन भंग करने लग गए। (अल-आराफ़, 134-135)
जब वे अपने वचन को पूरा नहीं किया बल्कि उसको भंग कर दिया । फिर हमने उनसे बदला लिया और उन्हें गहरे पानी में डुबो दिया, क्योंकि उन्होंने हमारी निशानियों को ग़लत समझा और उनसे ग़ाफिल हो गए। (अल-आराफ़, 136)
जब ईजिप्ट के वासी अपने राजा फ़िरऔन के पालन में अपनी ज़िद हठधर्मी में और अल्लाह के नबी मूसा इब्ने इम्रान के विरोध में हद से ज्यादा आगे बड़ गये। जब कि ईशवर ने इनके सामने महत्वपूर्ण सबूत रख दिये, बुद्धि को आश्चर्य करने और निगाहों को चौंका देनेवाले चमत्कार भी दिखलाये, फिर भी वे न पुनरावृत्ति करे और न सुधरे। फ़िरऔन की क़ौम में से बहुत कम लोग ईमान लाये। सारे जादूगर और बनी इस्राईल के सारे लोग फ़िरऔन के ज़ुल्म और उसके दण्ड के भय से अपने ईमान को गुप्त रखा करते थे । ईशवर ने मूसा और उनके भाई हारून को यह आदेश दिया कि वे अपने भक्तों के लिये फ़िरऔनियों के घरों से हटकर अलग घरों का चयन करें ताकि जब भी उन्हें आदेश मिले तो वे प्रस्थान करने के लिए तैयार रहें, आपस में एक दूसरे को पहचान सकें और इन घरों में ईशवर की प्रार्थना करें। हमने मूसा और उसके भाई की ओर प्रकाशना की कि, तुम दोनों अपने लोगों के लिए मिस्त्र में कुछ घर निश्चित करलो और अपने घरों को क़िबला बना लो। और नमाज़ क़ायम करो और ईमानवालों को शुभ-सूचना दे दो। (यूनुस, 87)
फिर ईशवर ने अपने बन्दे मूसा को यह आदेश दिया । हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, मेरे बन्दों को लेकर रातों-रात निकल जा। निश्चय ही तुम्हारा पीछा किया जाएगा (अल-शुअरा, 52)
तो फ़िरऔन का उत्तर यह रहा । इस पर फ़िरऔन ने जमा करनेवालों को नगरों में भेजा कि यह गिरे-पड़े लोगों का एक गिरोह है, और ये हमें क्रुद्ध कर रहे हैं। और हम चौकन्ना रहनेवाले लोग हैं। (अल-शुअरा, 53-56)
ईशवर की इच्छा यह थी। इस प्रकार हम उन्हें बाग़ों और स्त्रोतो और खज़ानों और अच्छे स्थान से निकाल लाए। ऐसा ही हम करते हैं, और इनका वारिस हमने इस्राईल की संतान को बनादिया। (अल-शुअरा, 57-59)
वे बनी इस्राईल से जा मिले । सुबह-तड़के उन्होंने उनका पीछा किया। (अल-शुअरा, 60)
जब वे बनी इस्राईल तक पहुँच गये। फिर जब दोनों गिरोहों ने एक-दूसरे को देख लिया तो मूसा के साथियों ने कहा, हम तो पकड़े गए। (अल-शुअरा, 61)
लेकिन ईशवर ने रसूल मूसा का जवाब अपने ईशवर पर भरोसा और यक़ीन से भरा था । उसने कहा, कदापि नहीं, मेरे साथ मेरा रब है। वह अवश्य मेरा मार्गदर्शन करेगा । (अल-शुअरा, 62)
तो ईशवर की कृपा और मार्गदर्शन इस रूप में आ गयी । तब हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, अपनी लाठी सागर पर मार। तो वह फट गया और (उसका) प्रत्येक टकुड़ा एक बडे पहाड़ की भाँति हो गया। और हम दूसरों को भी निकट ले आए। हमने मूसा को और उन सब को जो उसके साथ थे, बचा लिया। और दूसरों को डुबो दिया। निस्संदेह इस में एक बडी निशानी है। इस पर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं। और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है। (अल- शुअहा, 63-68)
इस गंभीर घड़ी में और हमने इस्राईलियों को सागर से पार करा दिया। फिर फ़िरऔन और उसकी सेनाओं ने सरकशी और ज्यादती के साथ उनका पीछा किया। (यूनुस, 90)
इस समय फ़िरऔन को अपनी मृत्यु और डूबने का पूरा विश्वास हो गया । यहाँ तक कि जब वह डूबने लगा तो पुकार उठा, मैं ईमान ले आया कि उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं जिसपर इस्राईल की संतान ईमान लाई। अब मैं आज्ञाकारी हूँ। (यूनुस, 90)
लेकिन उससे देर हो चुकी थी, परन्तु मौत ने उसको आ पकड़ा (अल्लाह ने कहा) क्या अब ? हालाँकि इससे पहले तू ने अवज्ञा की और बिगाड़ पैदा करनेवालों में से था । (यूनुस, 91)
ईशवर ने इस्राईलों के दुश्मन को डुबाते हुए उन पर अपनी अनुग्रह पूरी कर दी । परन्तु जब वे समुद्र पार किये । और इस्राईल की संतान को हमने सागर से पार करा दिया, फिर वे ऐसे लोगों के पास पहुँचे जो अपनी कुछ मूर्तियों से लगे बैठे थे। कहने लगे, ऐ मूसा। हमारे लिए भी कोई ऐसा उपास्य ठहरा दे, जैसे इनके उपास्य हैं। (अल-आराफ़, 138)
यानी फ़िरऔन और उसकी सेना से ईशवर द्वारा मुक्ति की अनुग्रह के बाद इस्राईलों ने मूर्खता पर आधारित विनती की । उसने कहा, निश्चय ही तुम बड़े ही अज्ञानी लोग हो। निश्चय ही वह सब कुछ जिस में ये लोग लगे हुए हैं, बरबाद होकर रहेगा और जो कुछ ये कर रहे हैं सर्वथा व्यर्थ है। (अल-आराफ़, 138-139)
फिर मूसा अपने ईशवर की ओर से रखी हुई अवधी पूरा करने चले गये । हमने मूसा से तीस रातों का वादा ठहराया, फिर हमने दस और बढ़ाकर उसे पूरा किया। इस प्रकार उसके रब की ठहराई हुई अवधि चालीस रातों में पूरी हुई और मूसा ने अपने भाई हारून से कहा, मेरे पीछे तुम मेरी क़ौम में मेरा प्रतिनिधित्व करना और सुधारना-संवारना और बिगाड़ पैदा करने वालों के मार्ग पर न चलना। (अल-आराफ़, 142)
ईशवर ने मूसा को अपने संदेश और वाणी से नवाज़ा (उपकृत किया) । उसने कहा, ऐ मूसा। मैंने दूसरे लोगों के मुक़ाबले में तुझे चुनकर अपने संदेशों और अपनी वाणी से तुझे नवाज़ा (उपकृत किया) अतः जो कुछ मैं तुझे दूँ उसे ले और कृतज्ञता दिखा। (अल-आराफ़, 144)
ईशवर ने मूसा को उपदेश और देवत्व आदेश से भरी हुई पुस्तक तौरात के द्वारा अनुग्रह किया । और हमने उसके लिए तख्तियों पर उपदेश के रूप में हर चीज़ और हर चीज़ का विस्तृत वर्णन लिख दिया। अतः उनको मज़बूती से पकडा उनमें उत्तम बातें हैं। अपने क़ौम के लोगों को हुक्म दे कि वे उनको अपनाएँ । मैं शीघ्र ही तुम्हें अवज्ञाकारियों का घर दिखाऊँगा । (अल-आराफ़, 145)
जब मूसा ने अपनी अवधि पूरी कर ली और ईशवर ने उन्हें तौरात से नवाज़ा (उपकृत किया) तो मूसा अपनी क़ौम के पास लौटे और यह देखा । और मूसा के पीछे उसकी क़ौम ने अपने ज़ेवरों से अपने लिए एक बछडा बनालिया जिस में से बैल की-सी आवाज़ निकलती थी। क्या उन्होंने देखा नहीं कि वह न तो उनसे बातें करता है और न उन्हें कोई राह दिखाता है। उन्होंने उसे अपना उपास्य बनालिया और वे बडे अत्याचारी थे। और जब (चेतावनी से) उन्हें पश्चात्ताप हुआ और उन्होंने देखलिया कि वास्तव में वे भटक गए हैं तो कहने लगे, यदि हमारे रब ने हमपर दया न की और उसने हमें क्षमा न किया तो हम घाटे में पड़ जाएँगे । (अल-आराफ़, 148-149)
इस घटना का असर मूसा पर बहुत बुरा हुआ । और जब मूसा क्रोध और दुख से भरा हुआ अपनी क़ौम की ओर लौटा तो उसने कहा, तुम लोगों ने मेरे पीछे मेरी जगह बुरा किया। क्या तुम अपने रब के हुक्म से पहले ही जल्दी कर बैठे ? फिर उसने तख्तियाँ डाल दीं और अपने भाई का सिर पकड़कर उसे अपनी ओर खींचने लगा । वह बोला, ऐ मेरी माँ के बेटे । लोगों ने मुझे कमज़ोर समझ लिया और निकट था कि मुझे मार डालते। अतः शत्रुओं को मुझपर हँसने का अवसर न दे और अत्याचारी लोगों में मुझे सम्मिलित न कर । (अल-आराफ़, 150-151)
फिर मूसा ने बछडा बनाने वाले सामरी से यह कहा । ऐ सामरी । तेरा क्या मामला है ? (ता-हा, 95)
तो सामरी ने यह जवाब दिया उसने कहा, मुझे उसकी सूझ प्राप्त हुई जिसकी सूझ उन्हें प्राप्त न हुई। फिर मैंने रसूल के पद-चिह्न से एक मुट्ठी (मिट्टी) उठा ली। फिर उसे डाल दिया और मेरे जी ने मुझे कुछ ऐसा ही सुझाया। (ता-हा, 96)
तो मूसा का जवाब निर्णायक और ईशवर का साझी ठहराने के सिद्धांत को ग़लत बताने वाला था । कहा, अच्छा, तो जा। अब इस जीवन में तेरे लिए यही है कि कहता रहे, कोई छुए नहीं। और निश्चय ही तेरे लिए एक निशचित वादा है जो तुझ पर से कदापि न टलेगा। और देख अपने इष्ट-पूज्य को जिस पर तू रीझा-जमा बैठा था। हम उसे जला डालेंगे, फिर उसे चूर्ण-विचूर्ण करके दरिया में बिखेर देंगे। तुम्हारा पूज्य-प्रभु तो बस वही अल्लाह है जिसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं। वह अपने ज्ञान से हर चीज़ पर हावी है। (ता-हा, 97, 98)
तख्तियाँ लेने के बाद फिर मूसा अपनी क़ौम को लेकर पवित्र धरती की ओर निकल पड़े । और जब मूसा का क्रोध शान्त हुआ तो उसने तख्तियों को उठा लिया। उनके लेख में उन लोगों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता थी जो अपने रब से डरते हैं। (अल-आराफ़, 154)
कुछ इस्राईली तौरात के आदेशों को स्वीकार करना नहीं चाहते थे, तो ईशवर ने उनके सरों पर पर्वत को उठा दिया । और याद करो जब हमने पर्वत को हिलाया जो उनके ऊपर था। मानों वह कोई छत्र हो और वे समझे कि बस वह उनपर गिरा ही चाहता है, थामों मज़बूती से जो कुछ हमने तुम्हें दिया है और जो कुछ उसमें है उसे याद रखो, ताकि तुम बच सको। (अल-आराफ़, 171)
हालाँकि तौरात उनके लिए मार्गदर्शन और दया का कारण था, फिर भी इन लोगों ने केवल पर्वत उन पर गिरने के भय से इसको स्वीकार करलिया । इसी प्रकार से ईशवर के नबी मूसा के साथ इस्राईलियों कि कट्टरपंथी चलती रही, परन्तु वे एक समय किसी व्यक्ति की हत्या कर दिये। इस्राईलियों का एक धनी व्यक्ति था, तो एक रात उसका भतीजा उसके पास आया और उसकी हत्या कर दी, लोग आपस में झगड़ने लगे, एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे और हर एक अपने आपसे इस आरोप का इन्कार करने लगे। वे इस समस्या को लेकर ईशवर के रसूल मूसा के पास पहुँचे, कट्टरपंथी और दुर्व्यवहार में यह कहने लगे ऐ मूसा अगर तुम ईशवर के नबी हो, तो अपने ईशवर से पूछ लो तो ईशवर ने मूसा को यह आदेश दिया ऐ मूसा इस्राईलों को आदेश दो कि वे एक गाय लेकर ज़िबाह करें, फिर इस गाय का एक टुकडा मृत शव पर मारें, तो मै अपनी इच्छा से उसको जीवित करदूँगा, और वह स्वयं अपनी ज़बान से अपने हत्यारे के बारे में बतलायेगा । ईशवर ने कहा और याद करो जब तुमने एक व्यक्ति की हत्य कर दी, फिर उस सिल-सिले में तुमने टाल-मटोल से कामलिया – जब कि जिसको तुम छिपा रहे थे, अल्लाह उसे खोल देनेवाला था। तो हम ने कहा, उसे उसके एक हिस्से से मारो। इस प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, ताकि तुम समझो । (अल-बक़रा, 72-73)
मूसा ने उनसे कहा कि गाय को ज़िबा करो । अगर यह लोग किसी भी गाय को लेकर ज़िब्ह कर देते यह उनके लिए काफी हो जाता, लेकिन इन लोगों ने कट्टरपंथी की । ईशवर ने अपने नबी मूसा की ज़बानी यह कहा । निश्चय ही अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि एक गाय ज़िबाह करो। कहने लगे, क्या तुम हमसे परिहास करते हो ? उसने कहा, मैं इससे अल्लाह की पनाह माँगता हूँ कि जाहिल बनूँ। (अल-बक़रा, 67)
तो क़ौम ने यह कहा ।बोले, हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हम पर स्पष्ट करदे कि वह (गाय) कैसी हो? (अल-बक़रा, 68)
वे अपने आप पर सख्ती करने लगे तो ईशवर ने भी उनके साथ सख्ती का मामला किया । उसने कहा, वह कहता है कि वह ऐसी गाय हो जो न बूढी हो, न बछिया (अल-बक़रा, 68)
यानी बडी उम्र वाली भी न हो और न बहुत ही छोटी हो इनके बीच की रास हो तो, जो तुम्हें हुक्म दिया जारहा है, करो । (अल-बक़रा, 68)
इन लोगों ने अपने आप पर परिधि सीमित कर ली। कहने लगे, हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि उसका रंग कैसा हो? (अल-बक़रा, 69)
जब कि ईशवर ने उनसे किसी रंग की (गाय का) प्रश्न नहीं किया और न ही किसी विशेष रंग की शर्त लगायी । कहा, वह कहता है कि वह गाय सुनहरी हो, गहरे चटकीले रंग की कि देखनेवालों को प्रसन्न करदेती हो। (अल-बक़रा, 69)
बंद कमरे मे बोर्ड के सदस्यों के साथ बैठक किये, फिर मूसा के पास आये। बोले, हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि वह कैसी हो, गायों का निर्धारण हमारे लिए संदिग्ध हो रहा है। यदि अल्लाह ने चाहा तो हम अवश्य पता लगा लेंगे। (अल-बक़रा, 70)
तो मूसा ने उन्हें यह जवाब दिया । उसने कहा, वह कहता है कि वह ऐसी गाय है जो सधाई हुई नहीं है कि भूमि जोतती हो और न वह खेत को पानी देती है, ठीक-ठाक है, उसमें किसी दूसरे रंग की मिलावट नहीं है। बोले, अब तुमने ठीक बात बताई है। फिर उन्होंने उसे ज़िबह किया, जबकि वे करना नहीं चाहते थे। (अल-बक़रा, 71)
वे इस्राईलियों के शहर-शहर, गाँव-गाँव घूमे, फिर बडे कष्ट और उच्च लागत (क़ीमत) से यह गाय प्राप्त किये। उसको ज़िबह किया और ज़िबह करना नहीं चाहते थे। वे गाय का एक टुकडा लेकर उस मृत शव पर मारा जिसके हत्यारे के बारे में वे झगड़ रहे थे, तो वह मृत शव ईशवर के आदेश से अपनी समाधि से ज़िंदा खडा हो गया, तो मूसा ने उससे प्रश्न किया तुम्हारी हत्या किसने की ? तो वह बोला इसने।उसे उसके एक हिस्से से मारो। इस प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, ताकि तुम समझो। (अल-बक़रा, 73)
जब वे पवित्र धरती कि ओर पहुँचे, तो देखा कि इसके वासी बडे शक्तिशाली लोग हैं और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम के लोगों से कहा था, ऐ मेरे लोगों । अल्लाह की उस नेमत को याद करो जो उसने तुम्हें प्रदान की है। उसने तुम में नबी पैदा किए और तुम्हें शासक बनाया और तुमको वह कुछ दिया जो संसार में किसी को नहीं दिया था। ऐ मेरे लोगों । इस पवित्र भूमि में प्रवेश करो जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दी है और पीछे न हटों, अन्यथा घाटे में पड़ जाओगे। उन्होंने कहा, ऐ मूसा। उसमें तो बड़े शक्तिशाली लोग रहते हैं। हम तो वहाँ कदापि नहीं जा सकते, जब तक कि वे वहाँ से निकल नहीं जाते। हाँ, यदि वे वहाँ से निकल जाएँ तो हम अवश्य प्रविष्ट हो जाएँगे। उन डरनेवालों में से ही दो व्यक्ति ऐसे भी थे जिनपर अल्लाह का अनुग्रह था। उन्होंने कहा, उन लोगों के मुक़ाबले में दरवाज़े से प्रविष्ट हो जाओ। जब तुम उसमें प्रविष्ट हो जाओगे तो तुम ही प्रभावी होगे। अल्लाह पर भरोसा रखो, यदि तुम ईमानवाले हो। उन्होंने कहा, ऐ मूसा। जब तक वे लोग वहाँ हैं, हम तो कदापि वहाँ नहीं जाएँगे। ऐसा ही है तो जाओ तुम और तुम्हारा रब, और दोनों लड़ो। हम तो यहीं बैठे रहेंगे। (अल-माइदा, 20-24)
आदेश के पालन करने में, अड़चने पैदा करने के कारण ईशवर ने उन्हें दोषी ठहराया । सोंच-विचार से काम न लेने और ईशवर के रसूल की अवज्ञा करने के कारण रास्ता भटकने का दण्ड दिया । उसने कहा, मेरे रब। मेरा अपने और अपने भाई के अतिरिक्त किसी पर अधिकार नहीं है। अतः तू हमारे और इन अवज्ञाकारी लोगों के बीच अलगाव पैदा कर दे। (अल-माइदा, 25)
ईशवर ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर लिया ।कहा, अच्छा तो अब यह भूमि चालीस वर्ष तक इनके लिए वर्जित है। ये धरती में मारे-मारे फिरेंगे, तो तुम इन अवज्ञाकारी लोगों के प्रति दुखी न हो। (अल-माइदा, 26)
वे सुबह-शाम, रात-दिन बिना किसी लक्ष्य के ज़मीन में घूमते रहे।