पिछले तीस(30) वर्षों के दौरान संसारल के ऊँची ऊँची सभ्यता वाले अनेक लोगों ने मुझसे सलाह ली। मैंने कई पीडितों का इलाज किया। मैंने अधड़ उम्र या पैंतीस(35) या इस जैसी उम्र वालों कि समस्याओं में से हर समस्या कि जड़ यही पाया, वे ईमान (विश्वास) और धर्म कि शिक्षों से दूर हैं । यह कहना बिलकुल सत्य होगा, यह सब पीडित रोगों के शिकार बनगये हैं, इसलिए कि यह सब धर्म के द्वारा मिलने वाले मान्सिक सुख से बहुत दूर हैं। इन पीडितों में से हर पीडित उसी समय स्वास्थीक्ता को प्राप्त कर सका, जब वह अपने विश्वास को सुधार लेता है, और जीवन का सामना करने के लिए धर्म के आदेशों से सहायता प्राप्त करने का प्रयास करता है।