मेरे जीवन के एक विशेश लम्हे में ईशवर ने मुझ पर अपने उपकारों और दयालुता कि भरमार की। जबकि मैं कष्ट और बाधा से अंतरिक रूप से पीडित था। मेरे भीतर आध्यात्मिकता को सुधारने की पूरी क्षमता थी। किन्तु मैं मुस्लिम बनगया। इस्लाम से पहले मेरे जीवन में प्रेम का कोई मतलब नही था। लेकिन जब मैने ख़ुरआन पढ़ा, तो मेरे अंदर दयालुता की भावना अधिक हो गई। मैं अपने मन में सदा प्रेम कि भावना से प्रभावित होने लगा। इसी कारण ने मुझे इस्लाम की ओर ले आया। वह कारण ईशवर का प्रेम है जिसका मुक़ाब्ला नही किया जा सकता।