ईशवर की तत्वदर्शिता ने यह चाहा कि मुहम्मद को धरती वालों के लिए एक ऐसा सन्देश देकर भेजे, जो हर समय और स्थान के अनुकूल हो। ईशवर ने कहा हमने तो तुम्हें सारे ही मनुष्यों को शुभ-सूचना देनेवाला और सावधान करनेवाला बनाकर भेजा, किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं। (सबा, 28)
और विरूपण, परिवर्तन से इस सन्देश को सुरक्षित रखना चाहा ताकि आपका यह सन्देश मानव के जीवित रहने तक जीवित रहे, परिवर्तन और विरूपण के संदेह से पवित्र रहे। इसी कारण ईशवर ने इस सन्देश को सारे संदेशों का समापक बनाया। और मुहम्मद को सारे रसूलों के अंत में आनेवाला बनाया। आपके बाद कोई रसूल नही है। इसलिए कि ईशवर ने आपके द्वारा सारे संदेशों को पूर्ण करदिया, नियमों को समाप्त करदिया और शरीर को संपूर्ण कर दिया ।
इसी कारण मुहम्मद की लायी हुई किताब को पिछली सारी किताबों पर ईशवर ने प्रभावित किया और इन किताबों का रद्द करनेवाला बनाया। इसी प्रकार आपके नियमों को पिछले सारे नियमों का रद्द करनेवाला बनाया। ईशवर ने आपके सन्देश को सुरक्षा रखने की ज़मानत लेली। परन्तु पीडि दर पीडि यह सन्देश बराबर पहुँचता रहा, इस प्रकार से कि ख़ुरआन वाणी और लिखित के रूप में एक पीडी से दूसरी पीडि तक आता रहा। और इस धर्म के नियम, प्रार्थना, सन्देश और पद्धतियाँ वास्तविक जीवन में उपयोग द्वारा पहुँचते रहे।
जो व्यक्ति मुहम्मद की सीरत (आत्मकथा) और हदीस की बडी-बडी किताबें पढेगा, वह यह ज्ञान प्राप्त करलेगा कि आप के सहाबा (साथी) मानवता के लिए आपकी सारी परिस्थितियाँ, सारी बातें और सारे कार्य को सुरक्षित रखा। वे आपके अपने ईशवर की प्रार्थना करने, उसके स्मरण करने, आपके ईशवर से क्षमा की प्रार्थना करने, ईशवर के मार्ग में यूद्ध करने, आपकी दयालुता और बहादुर होने, आपका अपने साथियों और आनेवाले मेहमानों के साथ व्यवहार की पंजीकृत किया। इसी प्रकार से सहाबा ने आपकी ख़ुशी और ग़म की घडियों को, सफर और गृहस्थ के लम्हों को, आपके खाने-पीने, पहनने, आपके सोने और जागने के तरीक़े को लिखित रूप मे सुरक्षित रखा ।
जब आपको यह भावना प्राप्त हो जाये, तो आप को स्वयं ईशवर की ओर इस धर्म के सुरक्षित रहने का विशवास हो जायेगा।
और उस समय यह ज्ञान प्राप्त हो जायेगा कि मुहम्मद सारे नबी और रसूलों के समापक है। इसलिए कि ईशवर ने हमें यह सूचना दी है कि यह रसूल सारे रसूलों के समापक है। ईशवर ने कहा । मुहम्मद तुम्हारे पुरुषों में से किसी के बाप नहीं है, बल्कि वे अल्लाह के रसूल और नबियों के समापक (अन्तिम नबी) हैं. अल्लाह को हर चीज़ का पूरा ज्ञान है।(अल-अहज़ाब, 40)
ईशवर ने अपने नबी मुहम्मद को इसलिए भेजा ताकि वह सारे संसार, स्त्री-पुरुष, छोटे बडे के लिए सर्वथा दयालुता हो बल्कि ईशवर ने आपको उस व्यक्ति के लिए भी दयालुता बनाकर भेजा जो आप पर विशवास नही रखता था। आपके सारे जीवन में दया खुलकर सामने आती है। इस दया का सब से बडा पक्ष यह है कि जब आप अपनी क़ौम पर दया करते हुए सीधे पथ की ओर बुलाये, तो वे आपको झुठलाये। आपको अपने शहर मक्का से बहिष्कार किया, और आप की हत्या करने का प्रयास किया। लेकिन ईशवर ने आपको सुरक्षा प्रदान की और उनके साथ चाल चली। ईशवर ने कहा । और याद करो जब इन्कार करनेवाले तुम्हारे साथ चालें चल रहे थे। तुम्हें क़ैद रखें या तुम्हें क़त्ल करदें या तुम्हें निकाल बाहर करें। वे अपनी चालें चल रहे थे और अल्लाह भी अपनी चाल चल रहा था। अल्लाह सबसे अच्छी चाल चलता है। (अल-अनफ़ाल, 30)
यह सब चालें आपके भीतर अपने क़ौम के लिये दया और उनके मार्गदर्शन की इच्छा अधिक होने का ही कारण बनी। इस बारे में ईशवर ने यह कहा। तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक रसूल आ गया है। तुम्हारा मुश्किल में पड़ना उसके लिए असह्य है। वह तुम्हारे लिए लालायित है। वह मोमिनों के प्रति अत्यन्त करूणामय, दयावान है। (अल-तौबा, 128)
फिर जब आप अपनी क़ौम के विरोध मक्का फतह कर लिये, उस समय आपने उनको क्षमा कर दिया। और जब ईशवर ने आपके पास आपकी क़ौम का विनाश करने के लक्ष्य से दो बडे पहाड़ों को मिलाने के लिए एक इंजील को भेजा, तो आपने कहाः बल्कि सब्र करो, हो सकता है कि उनकी पीडियों में से कोई एक ईशवर की प्रार्थना करनेवाला पैदा हो जाये। ईशवर ने कहा । हमने तुम्हें सारे संसार के लिए सर्वथा दयालुता बनाकर भेजा है। (अल-अंबिया, 107)
आप सारे संसार के लिए, हर रंग, भाषा, विचार, सिद्धांत और स्थान के लोगों के लिए दयालुता बनाकर भेजे गये।
आपकी दयालुता केवल मानवता के लिए ही नही, बल्कि पत्थरों और जानवरों के लिए भी आप दयालु थे। एक अन्सारी साहबी का ऊँट, जिसको उसके मालिक ने मारा था और उसको भूखा छोड़ दिया था। ईशवर के रसूल को उसकी स्थिति पर तरस आया। आप ने उस पर दया की। मालिक को ऊँट के साथ अच्छा व्यवहार करने, उसको भूखा न रखने और उसकी ऊर्जा से अधिक बोझ न लादने का आदेश दिया। जब आपने एक व्यक्ति को कबूतर के बच्चों को लेते हुए देखा, तो आपने उनपर दया की, हमदर्दी दिखायी, बच्चों को कबूतर के पास लौटाने का आदेश दिया। आप ने तो यह कहा हैः जब तुम ज़ब्ह करो तो अच्छे तरीक़े से करो। (इस हदीस को इमाम मुस्लिम ने वर्णन किया है) इसी प्रकार से आप की दयालुता पत्थरों को भी अपने अन्दर समा लेती है। परन्तु आप उस ऊँटनी के लिए हमदर्द हो गये, जो आपकी जुदाई पर निराश थी, आपने उसपर दया की। उसके पास पहुँचे। अपने गले से लगाया यहाँ तक कि वह शांत हो गयी।
आपकी यह दयालुता केवल एक परिस्थिति और घटना नहीं थी। बल्कि यह आदेश, नियम तरीक़ा और चरित्र था, जो आपने लोगों को पालन करने के लिए कहा। निश्चय लोगों के साथ दया, करूणा, सहानुभूति की ओर उत्तेजित करते हुए, और लोगों के बीच आपसी वैर पैदा करने से डराते हुए आप ने यह कहाः ऐ प्रभु। जो भी व्यक्ति मेरे क़ौम के किसी भी मामले का ज़िम्मेदार बनें और उनके बीच आपसी वैर डाल दे, तो तू उस पर सख़्ती कर। और जो भी व्यक्ति मेरे क़ौम के किसी मामले का ज़िम्मेदार बने और उनपर दया करे तो तू उस पर दया कर (इस हदीस को इमाम मुस्लिम ने वर्णन किया है।) दयालुता आपके आचार में से सब से महत्वपूर्ण आचार है, दया और सुरक्षा वाले धर्म इस्लाम का मूल नियम है।
मुहम्मद नबी बनकर आये, तो मुहम्मद के ईश देवत्व आपकी लायी हुई बातों और मार्गदर्शन से ईशवर ने मानवता को ऐसे मार्गदर्शन किया, जिसका वर्णन करना और ज्ञान प्राप्त करना आसान नही है। आप मानवता के लिए लाभदायक ज्ञान, अच्छे कार्य, उच्च चरित्र और सीधा पथ लेकर आये। अगर सारी क़ौमों की ज्ञान और व्यवहार के प्रति तत्वदर्शिता का मुहम्मद के लाये हुए तत्वदर्शिता से तुलना की जाये तो दोनों में बहुत अंतर दिखायी देगा। ईशवर ही के लिए उसकी इच्छा के अनुसार सारी प्रशंसाएँ हैं।
सिद्धांत के पहलू से (यह कहा जा सकता है कि) मानवता के बीच बहु आराधिकता और एक ईशवर के अतिरिक्त दूसरों की प्रार्थना करना आम था, यहाँ तक कि पिछले बहुत से देवत्व पुस्तकों वाले भी इससे पीडित थे। फिर अल्लाह के रसूल एकीकरण का सिद्धांत और उस ईशवर की प्रार्थना का संदेश लेकर आये जिसका कोई साझी नही। लोगों की मानवीय पूजा से निकाल कर मानवीय प्रभु की पूजा की ओर बुलाया। उनके मन को एकीकरण के सिद्धांत द्वारा बहु आराधिकता और एक ईशवर के अतिरिक्त दूसरों की पूजा करने की गंदगी से पवित्र बनाया। ईशवर ने मुहम्मद को उसी संदेश के साथ अवतरित किया, जिसको लेकर पिछले सारे नबी और रसूल आये थे। ईशवर ने कहा। हमने तुमसे पहले जो रसूल भी भेजा उसकी ओर यही प्रकाशना की, मेरे सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः तुम मेरी ही बन्दगी करो। (अल-अंबिया, 25)
ईशवर ने यह भी कहा । तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है, उस कृपाशील और दयावान के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं। (अल-बक़रा, 163)
सामाजिक पहलू से (यह कहा जा सकता है कि) आप को उस समय रसूल बनाकर भेजा गया, जिस समय अन्याय और दासता का रिवाज था। सामाजिक रूढ़िवाद परंपराओं ने मानवता को कई भागों में विभाजित किया था, जो एक दूसरे को दासता बनाते और अन्याय करते। तो मुहम्मद सारे लोगों के बीच, अरब के हो या न हों, गोरे हो या काले हों, समानता का संदेश लेकर आये। हर एक को दूसरे पर केवल ईशवर के डर और अच्छे कार्य ही के कारण महत्व मिलता है। ईशवर ने कहा। वास्तव में अल्लाह के यहाँ तुम में सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह है जो तुम में सबसे अधिक डर रखता है। (अल-हुजुरात, 13)
आप ने न्याय, दया और सामाजिक एकजुटता का आदेश दिया। अन्याय, निर्दय और ज़ुल्म से (रोका) निशेध किया। ईशवर ने कहा। निश्चय ही अल्लाह न्याय का और भलाई का और नातेदारों को (उनके हक़) देने का आदेश देता है और अश्लीलता, बुराई और सरकशी से रोकता है। वह तुम्हें नसीहत करता है, ताकि तुम ध्यान दो। (अल- नहल, 90)
बल्कि लोगों के अधिकार, यहाँ तक कि नैतिक अधिकार का भी ख्याल रखा। परन्तु आपस में एक दूसरे का परिहास करने से रोका। ईशवर ने कहा। ऐ लोगों जो ईमान लाए हो। न पुरुषों का कोई गिरोह दूसरे पुरुष की हँसी उड़ाए, संभव है वे उनसे अच्छे हों और न स्त्रियाँ स्त्रियों की हँसी उड़ाएँ, संभव है वे उनसे अच्छी हो, और न अपनों पर ताने कसो और न आपस में एक-दूसरे को बुरी उपाधियों से पुकारो। ईमान के बाद अवज्ञाकारी का नाम जुडना बहुत ही बुरा है। और जो व्यक्ति इस नीति से न रुके, तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं। (अल-हुजुरात, 11)
नैतिकता के भाग में (यह कहा जा सकता है कि) ईशवर ने अपने नबी को उस समय भेजा, जब कि मानवता का चरित्र तल (नीचे) जा चुका था। न कोई सदाचार था, न उच्च नैतिकता और न कोई अच्छे आचार। फिर नबी आये, ताकि लोगों को उच्च नैतिकता और अच्छे चरित्र की ओर मोड (झुका) दे। इस प्रकार से उनका जीवन अच्छे व्यवहार के कारण सुखमय (आनंद) हो गया। ईशवर के रसूल (मुहम्मद) ने कहाः मुझे नैतिकता को पूर्ण करने के लिए भेजा गया है (इस हदीस को इमाम बैहख़ी ने वर्णन किया। बल्कि ईशवर ने मुहम्मद के चरित्र (नैतिकता) को सर्वश्रेष्ठ बताया है। ईशवर ने कहा । निस्संदेह तुम एक महान नैतिकता के शिखर पर हो। (अल-ख़लम,4)
परन्तु आप नैतिकता और उच्च चरित्र के उदाहरण थे। आप पवित्रता, सदव्यवहार, भक्ति, सुशीलता, सुसंभाषण, बल्कि आप हर एक अच्छी बात में उदाहरण थे। ईशवर ने कहा। निस्संदेह तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में एक उत्तम आदर्श है, अर्थात उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और अन्तिम दिन की आशा रखता हो और अल्लाह को अधिक याद करे। (अल-अहज़ाब, 21)
जहाँ तक स्त्री की बात है तो वह इस्लाम के आने से पहले दो कठिन चीज़ों से पीडित थी। इस प्रकार कि अल्लाह ने अपने नबी को भेजा, उस समय स्त्री का आदर नही था, उसके कोई अधिकार नहीं थे। लोग स्त्री के प्रति आपसी यह अंतर रखते थे कि वह मानव है या नहीं। क्या उसको जीवित रहने का अधिकार है या फिर उसकी हत्या कर दी जाय, और बाल्य काल में ही उसको दफना दिया जाय। लोग स्त्री के प्रति इस प्रकार की बातें करते थे जैसा कि ईशवर ने कहा। और जब उनमें से किसी को बेटी की शुभ-सूचना मिलती है तो उसके चेहरे पर कलौंस छा जाती है और वह घुटा-घुटा रहता है। जो शुभ-सूचना उसे दी गई वह (उसकी दृष्टि में) ऐसी बुराई की बात हुई कि उसके कारण वह लोगों से छिपता फिरता है कि अपमान सहन करके उसे रहने दे या उसे मिट्टी में दबा दे। देखों, कितना बुरा फ़ैसला है जो वे करते हैं। (अल-नहल, 58, 59)
परन्तु स्त्री केवल एक खिलौना थी, गुडिया थी और निरादर प्राणी थी ।
तो ईशवर ने स्त्री को सम्मान देने के लिए अपने रसूल को भेजा। ईशवर ने कहा। और यह भी उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारी ही सहजाति से तुम्हारे लिए जोडे पैदा किए, ताकि तुम उनके पास शान्ति प्राप्त करो। और उसने तुम्हारे बीच प्रेम और दयालुता पैदा की। और निश्चय ही इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो सोंच-विचार करते हैं। (अल-रूम, 21)
बल्कि ईशवर ने माँ के रूप में स्त्री के साथ सदव्यवहार करने का आदेश दिया। ईशवर ने कहा । तुम्हारे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। (अल-इस्रा, 23)
ईशवर ने स्त्री के साथ अच्छा व्यवहार करने को पुरुष से अधिक महत्व दिया। परन्तु जब एक व्यक्ति ईशवर ने रसूल के पास आया, तो कहने लगाः ऐ ईशवर के रसूल मेरे अच्छे व्यवहार का कौन सब से अधिक अधिकार रखता है। रसूल ने कहाः आपकी माँ। उस व्यक्ति ने कहा फिर कौन, रसूल ने कहाः आपकी माँ। उस व्यक्ति ने कहा फिर कौन, रसूल ने कहाः आपकी माँ। व्यक्ति ने कहाः फिर इसके बाद कौन। रसूल ने कहाः आपके पिता (इस हदीस को बुख़ारी ने वर्णन किया) बेजी के रूप में स्त्री को सम्मान देने का आदेश दिया। कहाः जिस व्यक्ति ने तीन लड़कियों का पालन-पोषण किया। उन पर दया किया और उनकी आवश्यक्ताओं को पूरा किया, तो निस्संदेह वह स्वर्ग का अधिकारी है। आप से यह प्रश्न किया गयाः ऐ ईशवर के रसूल, अगर किसी के पास केवल दो ही लड़कियाँ हो तो। आप ने कहाः चाहे दो ही क्यों न हो। (इस हदीस को इमाम अहमद ने वर्णन किया है) इसी प्रकार बेटी के रूप में स्त्री को सम्मान दिया। इस सम्मान को स्त्री के अच्छे होने से संबन्धित रखा परन्तु आप ने कहाः तुम में सब से अच्छा व्यक्ति वह है जो अपने घरवालों (बीवि बच्चों) के साथ अच्छा हो। मै अपने घरवालों के साथ तुम में सब से अच्छा हूँ (इस हदीस को इब्ने माजा ने वर्णन किया। )