सारे धर्मों में हर धर्म का अपने निर्माता के नाम पर, या उस विशेष क़ौम के नाम पर जिनके बीच उसका निर्माण हुआ, नाम रखा गया। जोरास्टर से सह संबंध होने के कारण जोरास्टरी (फारसी धर्म) रखा गया। बुद्ध के नाम से संबंध करते हुए बौद्धमत नाम रखा गया। यहूदीयत का यह नाम इसलिए रखा गया कि वह यहूज़ा नामी कुंबे में प्रकट हुआ। नसरानी (ईसाई) धर्म नसारा (सहायतकार) के नाम से दिया गया है। यह बातें इस्लाम के अन्दर नहीं है।
इस्लाम धर्म को किसी व्यक्ति या किसी विशेष क़ौम से जोड़ा नही गया है। बल्कि हर वह व्यक्ति जो ईशवर के सामने विनम्र (झुकता) होता है। उसके आदेशों का पालन करता है। और उल्लंघन नहीं करता है। एक ईशवर की आराधना करता है, तो उसने अपने आप को ईशवर को सौंप दिया। जब यह नबी और रसूलों के समापक मुहम्मद का अनुसरण करेगा। आपके लाये हुए सत्य धर्म के मार्ग पर चलेगा। आप पर विशवास रखेगा और आपकी बतायी हुई बातों पर चलेगा, निस्संदेह वह सच्चा मुसलमान है, चाहे वह किसी समय या स्थान का रहनेवाला हो, और किसी भी रंग और जात का हो
इस्लाम वह धर्म है जिसका सारा ब्रह्माण्ड पालन करता है। ईशवर ने कहा। अब क्या इन लोगों को अल्लाह के दीन (धर्म) के सिवा किसी और दीन की तलब है, हालाँकि आकाशों और धरती में जो कोई भी है स्वेच्छापूर्वक या विवश होकर उसी के आगे झुका हुआ है। और उसी की ओर सबको लौटना है। (आल-इमरान, 83)
यह बात सब जानते है कि इस ब्रह्माण्ड की हर चीज़ विशेष नियम और निश्चित आधार पर चलती है। सूर्य, चन्द्रमा, तारे और धरती नियम के अनुसार चलते हैं, जिनसे कण (ज़र्रा भर भी) भी हटना या निकल जाना उनके वश (बस) की बात नही यहाँ तक कि मानव भी जब स्वयं अपने आप में विचार करेगा, तो आपको यह ज्ञान प्राप्त होगा कि मानव भी ईशवर के विशेष नियमों का पूर्ण रूप से अनुपालन करता है। परन्तु वह अपने जीवन के लिए बनाये गये नियमित देवत्व अनुमान (ख़ुदाई अंदाजा) के अनुसार ही साँस लेता है। पानी, भोजन, प्रकाश और गर्मी की आवश्यकता से प्रभावित होता है। शरीर के सारे आंग इसी देवत्व अनुमान के प्रकार चलते हैं। इन अंगों से होने वाला हर काम ईशवर के निश्चित आधारों के अनुसार ही होता है।
इस ब्रह्माण्ड की हर चीज़, आसमान के बडे ग्रह से लेकर धरती के छोटे मिट्टी के कण तक, इसी देवत्व पूर्ण अनुमान का पालन करती है। यह शक्तिमान, आदरणीय प्रभु का अनुमान (अंदाज़ा) है। जब आकाश, धरती और इन दोनों के बीच की हर चीज़ इसी अनुमान (अंदाज़े) की अनुयायी है, तो इस से य मालूम हो जाता है कि इस्लाम सारे ब्रह्माण्ड का धर्म है। क्योंकि इस्लाम का मतलब बिना किसी आपत्ति के पालन करना, अपने शासक के आदेशों को मानना है। सूर्य, चन्द्रमा और धरती ईशवर के अनुयायी है। हवा, पानी, प्रकाश, अंधेरा और गर्मी अनुयायी है। पेड़, पत्थर, पशु-पक्षी अनुयायी है। ईशवर ने कहा । जो चीज़ें आकाशों में हैं जो धरती में हैं, उसने उन सबको अपनी ओर से तुम्हारे काम में लगा रखा है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो सोच-विचार से काम लेते हैं। (अल-जासिया, 13)
बल्कि वह मानव जो अपने ईशवर का ज्ञान नही रखता है, उसके वजूद का इन्कार करता है, उसके निशानियों का तिरस्कार करता है, या उसके अतिरिक्त किसी और की पूजा करता है, किसी और को उसका साझी बनाता है, वह भी अपनी वृत्ति (फितरत) के अनुसार अनुयायी है। मानव के मन में दो बातों के बीच टकराव रहता है।
पहली बातः वह वृत्ति (फितरत) जिसके अनुसार ईशवर ने मानव की सृष्टि की है। यानी ईशवर के अनुयायी बनना, उसके सामने झुकना, श्रद्धा से उसकी आराधना करना। हर उस चीज़ से प्रेम करना जिससे ईशवर प्रेम करता है, जैसे सत्यता, भलाई और नेकी। हर उस चीज़ से नफरत करना जिससे ईशवर द्वेश करता है, जैसे बुराई, अन्याय और झूठ। इसके अतिरिक्त वृत्ति (फितरत) के अनुसार दूसरी चीज़ें, जैसे खाने-पीने और ब्याह की इच्छा रखना। धन और बाल बच्चों से प्रेम रखना। इसके लिए शरीर के अंगों का अपने-अपने विशेष काम करना। दुसरी बातः मानव की इच्छा और उसकी पसन्द। ईशवर ने मानव की ओर अपने रसूल भेजे और पुस्तकें अवतरित की। ताकि सच और झूठ, मार्गदर्शन और गुमराही, भलाई और बुराई के बीच मानव अंतर करे। ईशवर ने मानव को बुद्धि और समझ दी, ताकि वह अपनी पसंद में दूरदर्शिता से काम ले। अगर वह चाहे तो भलाई के मार्ग पर चले, जो उसे सत्यता और मार्गदर्शन की ओर ले जाता है। अगर चाहे तो बुराई के मार्ग पर चले, जो उसे विनाश और असत्य की ओर ले जाता है। कह दो, यह सत्य है तुम्हारे रब की ओर से। तो अब जो कोई चाहे माने और जो चाहे इनकार कर दे। हमने तो अत्याचारियों के लिए आग तैयार कर रखी है जिसकी क़नातों ने उन्हें घेर लिया है। यदि वे फ़रियाद करेंगे तो फ़रियाद के प्रत्युत्तर में उन्हें ऐसा पानी मिलेगा जो तेल की तलछट जैसा होगा, वह उनके मुँह भून डालेगा। बहुत ही बुरा है वह पेय और बहुत ही बुरा है वह विश्रामस्थल । (अल-कहफ़, 29)
जब आप पहली बात को सामने रखते हुए मानव की ओर देखेंगे, तो आप उसको आत्मसमर्पण करने वाला और इसी के भीतर जीवित रहने वाला पाओगे। इस आत्मसमर्पण के अलावा मानव के लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मानव की स्थिति पूर्ण रूप से दूसरे प्राणियों के समान है। जब आप दूसरी बात को सामने रखते हुए मानव की ओर देखेंगे, तो आप उसको चयनित पायेंगें। जो चाहे वह चयन कर सकता है। चाहे तो वह मुसलमान हो जाये, और चाहे तो काफिर। ईशवर ने कहा। हमने उसे मार्ग दिखाया, अब चाहे वह शुक्रगुज़ार बने या नाशुक्र। (अल-दहर, 3)
इसी कारण आप मानवता को दो भागों में विभाजित देखेंगेः एक वह मानव जो अपने प्रजापति का ज्ञान रखता है। उसको अपना प्रभु, देवता और मालिक जानता है। उसी की पूजा करता है। अपने वैकल्पिक जीवन में उसके नियमों का पालन करता है। जिस प्रकार से कि वह वृत्ति के अनुसार अपने ईशवर के लिए आत्मसमर्पण करने वाला है, जिसके अतिरित उसके लिए कोई विकल्प नही है, इसी प्रकार से वह अपने ईशवर के अनुमान (तक़दीर) का अनुयायी है। यही वह पक्का मुसलमान है जिसका इस्लाम संपूर्ण हो गया और उसका ज्ञान भी सही हो गया। इसलिए कि वह यह ज्ञान प्राप्त करलिया कि ईशवर उसका प्रजापति है, जिसने उसके पास रसूलों को भेजा है और ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति दी है। इस मुसलमान की बुद्धि संपूर्ण हो गयी और उसकी सोंच सही हो गयी इसलिए कि वह अपने विचार की शक्ति काम में लाया। फिर यह निर्णय लिया कि एक उस ईशवर के अतिरिक्त किसी और की पूजा न की जाय, जिसने उसको हर विषय में सोंचने समझने की क्षमता दी है। इस मानव की जिह्वा सही हो गयी, सत्य को बोलने वाली हो गयी, इसलिए कि वह अब केवल एक ईशवर को मानता है, वह ईशवर जो उसमें बातचीत की क्षमता पैदा की है। अब ऐसा लगेगा कि उसके जीवन में केवल सत्य ही है। इसलिए कि वह अब ईशवर के उन नियमों का अनुयायी है जिसमें स्वयं उसी के समस्याओं के लिए अच्छाई है। मानव और सारे प्राणियों के बीच प्रेम और परिचय का संबन्ध हो गया। इसलिए कि वह तत्वदर्श, ज्ञानी ईशवर की पूजा करता है, जिसके आदेशों और अनुमान (तक़दीर) का सारे प्राणी अनुपालन करते हैं। निस्संदेह ऐ मानव ईशवर ने इन सारे प्राणियों को तेरे ही काम में लगाया है। ईशवर ने कहा। जो कोई आज्ञाकारिता के साथ अपना रूख़ अल्लाह की ओर करे और वह उत्तमकार भी हो तो उसने मज़बूत सहारा थाम लिया। सारे मामलों का अंजाम अल्लाह ही की ओर है। (लुक़मान, 22)
इस्लाम वह धर्म है जिसको ईशवर ने सारी मानवता के लिए अवतरित किया है। ईशवर ने कहा। अतः तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है। तो उसी के आज्ञाकारी बनकर रहो और विनम्रता अपनानेवालों को शुभ-सूचना दे दो। (अल हज, 34)
वह सारे नबी और रसूलों का धर्म है। ईशवर ने कहा कहो, हम ईमान लाए अल्लाह पर और उस चीज़ पर जो हमारी ओर उतरी और जो इब्राहीम और इसमाईल और इसहाक़ और याक़ूब और उनकी संतान की ओर उतरी, और जो मूसा और ईसा को मिली और जो सभी नबियों को उनके रब की ओर से प्रदान की गई। हम उनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं करते और हम केवल उसी के आज्ञाकारी हैं। (अल-बक़रा, 136)
निश्चित रूप से ईशवर के रसूलों ने इसी धर्म पर विश्वास किया। ईशवर के लिए अपने आत्मसमर्पण की घोषणा की और उसी का संदेश पहुँचाया। ईशवर ने नूह (अलैहिसलाम) के बारे में कहा। उन्हें नूह का वृत्तान्त सुनाओ। जब उसने अपनी क़ौम से कहा, ऐ मेरी क़ौम के लोगों । यदि मेरा खड़ा होना और अल्लाह की आयतों के द्वारा नसीहत करना तुम्हें भारी हो गया है तो मेरा भरोसा अल्लाह पर है। तुम अपना मामला ठहरालो और अपने ठहराए हुए साझीदारों को भी साथ लेलो, फिर तुम्हारा मामला तुमपर कुछ संदिग्ध न रहे, फिर मेरे साथ जो कुछ करना है, करडालो और मुझे मुहलत न दो। फिर यदि तुम मुँह फेरोगे तो मैंने तुमसे कोई बदला नहीं माँगा। मेरा बदला (पारिश्रमिक) बस अल्लाह के ज़िम्मे है और आदेश मुझे मुस्लिम (आज्ञाकारी) होने का हुआ है। (यूनुस, 71, 72)
ईशवर ने इब्राहीम (अलैहिसलाम) के बारे में कहा। क्योंकि जब उससे उसके रब ने कहा, मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो जा। उसने कहा, मैं सारे संसार के रब का मुस्लिम हो गया। (अल-बक़रा, 131)
बल्कि इब्राहीम ने बाद में आनेवाली अपनी संतान को भी इसी बात की वसीयत की। ईशवर ने इस बारे में यह कहा। और इसी की वसीयत इब्राहीम ने अपने बेटों को की और याक़ूब ने भी (अपनी संतान को) की कि ऐ मेरे बेटों । अल्लाह ने तुम्हारे लिए यही दीन (धर्म) चुना है, तो इस्लाम (ईश-आज्ञापालन) के अतिरिक्त किसी और दशा में तुम्हारी मृत्यु न हो। (क्या तुम इब्राहीम के वसीयत करते समय मौजूद थे) या तुम मौजूद थे जब याक़ूब की मृत्यु का समय आया। जब उसने अपने बेटों से कहा, तुम मेरे पशचात किसकी ईबादत करोगे, उन्होंने कहा, हम आपके इष्ट-पूज्य और आपके पूर्वज इब्राहीम और इसमाईल और इसहाक़ के इष्ट-पूज्य की बन्दगी करेंगे – जो अकेला इष्ट-पूज्य है, और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं। (अल-बक़रा, 132, 133)
ईशवर ने मूसा (अलैहिसलाम) के बारे में कहा। मूसा ने कहा, ऐ मेरी क़ौम के लोगों। यदि तुम अल्लाह पर ईमान रखते हो तो उसपर भरोसा करो, यदि तुम आज्ञाकारी हो। (यूनुस, 84)
ईशवर ने ईसा के बारे में कथा के रूप में यह कहा। और याद करो जब मैंने हवारियों (साथियों और शार्गिदों) के दिल में डाला कि (मुझपर और मेरे रसूल पर ईमान लाओ, तो उन्होंने कहा, हम ईमान लाए और तुम गवाह रहो कि हम मुस्लिम (फ़रमॉबरदार) हैं। (अल-माइदा, 111)
इस्लाम मानवता के लिए वह अंतिम देवत्व सन्देश है, जिसको ईशवर ने मुहम्मद द्वारा सारी मानवता के लिए भेजा है। इसी को धर्म के रूप में ईशवर ने संपूर्ण किया है, और अपने भक्तों के लिए पसंद किया है। ईशवर ने कहा। आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारे धर्म को पूर्ण करदिया और तुमपर अपनी नेमत पूरी करदी और मैंने तुम्हारे लिए धर्म के रूप में इस्लाम को पसन्द किया। (अल-माइदा, 3)
इस पवित्र आयत में ईशवर ने यह सूचना दी है कि वह मानवता के लिए इस्लाम को धर्म के रूप में पसन्द किया है। जिससे कभी वह निराश नहीं होगा। ईशवर ने यह घोषणा की कि इस्लाम सत्य धर्म है। इसके अतिरिक्त किसी से वह कोई धर्म स्वीकार नहीं करेगा। ईशवर ने कहा । दीन (धर्म) तो अल्लाह की दृष्टि में इस्लाम ही है। (अल-इमरान, 19)
ईशवर ने यह भी कहा । जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई और दीन (धर्म) तलब करेगा तो उसकी ओर से कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। और आख़िरत में वह घाटा उठानेवालों में से होगा। (आल-इमरान, 85)
पहली आयत में ईशवर ने इस बात की पुष्टि की है कि ईशवर की दृष्टि में धर्म केवल इस्लाम ही है। दूसरी आयत में ईशवर ने यह सूचना दी है कि वह किसी से इस्लाम के अतिरिक्त कोई और धर्म हरगिस स्वीकार नहीं करेगा। मृत्यु के बाद सफल और सुखी केवल मुसलमान ही हैं। इस्लाम के अतिरिक्त किसी और धर्म का अनुसरण करते हुए मरजाने वाले भविष्य जीवन में घाटे में है और उन्हें नरक मे दण्ड दिया जायेगा। इसी कारण सारे रसूलों ने ईशवर के नाम आत्मसमर्पण करने की घोषणा की। इस्लाम न लानेवालों से अपनी बेगुनाही की सूचना दी। यहूदी या ईसाइयों में से जो भी मुक्ति और प्रसन्नता प्राप्त करना चाहे, वह इस्लाम में प्रवेश करे। इस्लाम के रसूल मुहम्मद का पालन करे, ताकि वह वास्तव में मूसा और ईसा का पालन करनेवाला बने। इसलिए कि मूसा, ईसा, मुहम्मद और ईशवर के सारे रसूल मुस्लिम थे। सब ने इस्लाम की ओर बुलाया इसलिए कि ईशवर का यही वह धर्म है जिसको लेकर वे आये है। रसूलों के समापक मुहम्मद के आजाने के बाद से ख़ियामत तक इस धरती पर पाये जाने वाले हर व्यक्ति के लिए अपने आपको मुसलमान कहना, और मुसलमान होने का दावा करना, केवल उसी समय ईशवर स्वीकार करता है जब कि वह मुहम्मद को ईशवर द्वारा भेजा गया रसूल मानता है। उसका पालन करता है, और मुहम्मद पर अवतरित की हुई ख़ुरआन के अनुसार चलता है। निश्चित रूप से ईशवर के रसूल ने कहाः उस ज़ात (ईशवर) की क़सम जिसके हाथ मे मुहम्मद की जान है, इस उम्मत (क़ौम) का कोई भी व्यक्ति, यहूदी हो या ईसाई, मुझसे कोई बात सुने, फिर उसकी मृत्यु हो जाये, और वह मेरे लाये हुए सन्देश पर विश्वास न रखे, तो वह नरक वालों में से होगा। (इस हदीस को इमाम मुस्लिम ने वर्णन किया।)
इस्लाम धर्म जिसको लेकर ईशवर ने अपने रसूल मुहम्मद को सारी मानवता के लिए भेजा है, वह ईशवर पर विश्वास और उसे एकीकरण का सिद्धांत वाला धर्म है। ईशवर ने कहा। वह जीवन्त है। उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः उसी को पुकारो धर्म को उसी के लिए विरुद्ध करके। सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है जो सारे संसार का रब है। कह दो, मुझे इससे रोक दिया गया है कि मैं उनकी बन्दगी करूँ जिन्हें तुम अल्लाह से हटकर पुकारते हो, जबकि मेरे पास मेरे रब की ओर से खुले प्रमाण आचुके हैं। मुझे तो हुक्म हुआ है कि मैं सारे संसार के रब के आगे नत मस्तक हो जाऊँ। (अल-ग़ाफिर 65,66)
वह एक ईशवर के लिए प्रार्थना को शुद्ध बनाने का धर्म है। ईशवर ने कहा। क्या अलग-अलग बहुत-से रब अच्छे हैं या अकेला अल्लाह, जिसका प्रभुत्व सब पर है। तुम उसके सिवा जिनकी भी बन्दगी करते हो वे तो बस निरे नाम हैं जो तुमने रख छोड़े हैं, और तुम्हारे बाप-दादा ने। उनके लिए अल्लाह ने कोई प्रमाण नहीं उतारा। सत्ता और अधिकार तो बस अल्लाह का है। उसने आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो। (यूसुफ़, 39, 40)
वह श्रेष्ठ बुद्धियों का धर्म है, जो अपनी सत्यता और पवित्रता के साथ प्रस्तुत किया जाये, तो सारे लोग अनुयायी और आत्मसमर्पण करते हुए ज़रूर इसका पालन करेंगे। ईशवर ने कहा। यही सीधा, सच्चा दीन (धर्म) है, किन्तु अधिकतर लोग नहीं जानते । (यूसुफ़, 40)
सबूत, प्रमाण और तर्क का धर्म है। कहो, लाओ अपना प्रमाण यदि तुम सच्चे हो। (अल-नम्ल, 64)
सुख, प्रसन्नता और शाँति का धर्म है। जिस किसी ने भी अच्छा कर्म किया, पुरुष हो या स्त्री, शर्त यह है कि वह ईमान पर हो तो हम उसे अवश्य पवित्र जीवन-यापन कराएँगे। (अल-नहल, 97)
वह इस्लाम धर्म जिसको देकर ईशवर ने अपने रसूल मुहम्मद को भेजा है, उसमें ईशवर ने लाभदायक चीज़ों को हलाल और नष्टदायक अस्वच्छ चीज़ों को हराम किया है। हर भलाई का आदेश दिया है। हर बुराई से रोका है। वह आसान और सरल धर्म है। इसमें कोई कष्ट नही है। मानव की क्षमता से अधिक कोई बोझ नही है। ईशवर ने कहा । (तो आज इस दयालुता के अधिकारी वे लोग हैं) जो उस रसूल, उम्मी नबी, का अनुसरण करते हैं जिसे वे अपने यहाँ तौरात और इन्जील में लिखा पाते हैं। और जो उन्हें भलाई का हुक्म देता और बुराई से उन्हें रोकता है, उनके लिए अच्छी-स्वच्छ चीज़ों को हलाल और बुरी-अस्वच्छ चीज़ों को उनके लिए हराम ठहराता है और उनपर से उनके वे बोझ उतारता है जो अब तक उनपर लदे हुए थे और उन बन्धनों को खोलता है जिनमें वे जकड़े हुए थे। अतः जो लोग उसपर ईमान लाये, उसका सम्मान किया और उसकी सहायता की और उस प्रकाश का अनुसरण किया जो उसके साथ अवतरित हुआ है, वही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं। (अल-आराफ़, 157)
वह पूर्ण शुद्ध धर्म है जो हर समय और स्थान के लिये धरती और उस पर रहनेवालों के ईशवर की ओर से समाप्त किये जाते तक संतुलित है। निश्चित रूप से यह धर्म मानव के धार्मिक और संसारिक आवश्यकताओं को लेकर आया है।
वह प्रसन्नता और शाँति का मार्ग है। ज्ञान और सभ्यता का मार्ग है। न्याय और कृपा का मार्ग है। सम्मान और स्वतंत्रता का मार्ग है। हर भलाई और अच्छाई का मार्ग है। यह धर्म कितना ही महान और पूर्ण है। और धर्म की दृष्टि से उस व्यक्ति से अच्छा कौन हो सकता है जिसने अपने आप को ईशवर के आगे झुका दिया। ईशवर ने कहा और दीन (धर्म) की दृष्टि से उस व्यक्ति से अच्छा कौन हो सकता है जिसने अपने आपको अल्लाह के आगे झुका दिया और वह अत्यन्त सत्कर्मी भी हो और इब्राहीम के तरीक़े का अनुसरण करे, जो सबसे कटकर एक का हो गया था। अल्लाह ने इब्राहीम को अपना घनिष्ठ मित्र बनाया था। (अल-निसा, 125)
प्रजापति (जो तुम पर तुम्हारी अपनी जान से भी ज्यादा दयालुता है) प्रजापति की ओर से यह एक सदा है, जो तुम्हें अंधेरे से निकालकर प्रकाश की ओर आने का संदेश देती है। ईशवर ने कहा । कहो, ऐ किताबवालों । आओ एक ऐसी बात की ओर जिसे हमारे और तुम्हारे बीच समान मान्यता प्राप्त है, यह कि हम अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करें और न उसके साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ और न परस्पर हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह से हटकर रब बनाए। फिर यदि वे मुँह मोड़ें तो कह दो, गवाह रहो, हम तो मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं। (आले-इमरान, 64)
ईशवर के सामने अपने आप को झुकानेवाले इस मानव के मुक़ाबले में एक दूसरा मानव ऐसा है जो ईशवर द्वारा बनायी गयी अपनी इस्लामिक वृत्ति (फितरत) को, इस धर्म के सत्य होने का प्रमाण देने वाली निशानियों और चमत्कारों के बावजूद, इन्कार के पर्दे से छुपाना चाहता है। ईशवर के एकीकरण के सिद्धांत के विरोध में वह अपने लिए बहु आराधिकता का चयन करता है। सत्य, विश्वास, मार्गदर्शन के प्रकाश के बदले मिथक, किवदंती और भ्रम के अंधेरे में घूमने लगा।
वह अपने लिए स्वयं साधुओं और पुजारियों का भक्त बनना पसंद किया, बल्कि एक ईशवर का भक्त होने के बदले रसूलों का भक्त होने को पसन्द किया। उसने अपने वृत्ति (फितरत) को मिटा दिया। अपनी बुद्धि को व्यर्थ बनादिया। ईशवर की ओर से बनायी गयी वृत्ति को छोडकर हवस और इच्छाओं का पालन किया। जबकि प्रत्येक शिशु इस्लाम की वृत्ति ही (प्रकृति) पर जन्म लेता है। अल्लाह की उस प्रकृत्ति का अनुसरण करो जिस पर उसने लोगों को पैदा किया। अल्लाह की बनायी हुई संरचना बदली नही जा सकती। यही सीधा और ठीक धर्म है, किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं। (अल-रूम, 30)
अब आप स्वयं यह अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि काफिर कितना ज़्यादा गुमराही और अंधेरे में पडा हुआ है। ईशवर ने कहा। वही तो है जिसने तुम्हें धरती में ख़लीफ़ा बनाया। अब जो कोई इन्कार करेगा, उसके इन्कार का वबाल उसी पर रै। इनकार करनेवालों का इन्कार उनके रब के यहाँ केवल प्रकोप ही को बढ़ाता है, और इन्कार करनेवालों का इन्कार केवल घाटे में ही अभिवृद्धि करता है। (फ़ातिर, 39)
इस सन्देश के मूल नियम और विशेषताएँ क्या-क्या है ।