- स्त्री का स्थान
इस्लाम ने अरब देश में स्त्री के स्थान को ऊँचा किया। लडकियों को ज़िन्दा दफ़न करने के रिवाज को समाप्त किया। न्यायिक कार्यों और संपत्ती के अधिकारों में स्त्री और पुरुष के बीच समान्ता का निर्णन दिया, स्त्री को हर हलाल काम करने, अपनी संपत्ती और धन की स्वयं सुरक्षा करने, वारीस बनने, और इच्छा के अनुसार अपने धन को ख़र्च करने का अधिकार दिया है। इस्लाम ने अज्ञानपूर्ण काल में वास्तुओं के समान स्त्रियों का वंशानुक्रम से संतान की संपत्ती बन जाने की परंपरा को समाप्त किया। विरासत में पुरुष के भाग से आधा स्त्री का भाग माना। स्त्रियों की इच्छा के बिना उनका विवाह करने से रोका ।
- अधिक धर्म महत्वपूर्ण विषय है
मुसलमानों कि नैतिकता, धार्मिक और शासन के नियम सारे धर्म पर आधारित हैं। इस्लाम सारे धर्मों में अधिकतर साधारण और साफ है। इस्लाम कि जड़ ईशवर (अल्लाह) के अतिरिक्त किसी और को पूज्य प्रभु न मानने और मुहम्मद को ईशवर का रसूल मानने की गवही देना है।
- ख़ुरआन कि छवी और उसकी महान्ता
14 सदियों तक ख़ुरआन मुसलमानों के विचार, आचार और लाखों लोगों कि प्रतिभा सुधारते रहा। ख़ुरआन मन में अधिकतर सरल, अल्प अस्पष्टता, परंपरा और रिवाज का अनुसरण करने से बहुत दूर, मूर्ती पूजा और पुजारियों से मुक्ति पाने का सिद्धांत पैदा करता है। मुसलमानों के चारित्रिक और संस्कृतिक स्थल को ऊँचा करने में इस्लाम ही की बड़ी भूमिका है। इस्लाम ने ही मुसलमानों के बीच समाजिक विधी और समाजिक संघटन की स्थापना की है। उन्हें सही नियमों का पालन करने पर प्रोत्साहिक बनाया। उनकी बुद्धी को मिथक, भ्रम, अन्याय और क्रुर्ता से आज़ाद किया। सेवकों कि स्थितियों को सुधारा और निमन जाती लोगों के मन में सम्मान पैदा किया।
- महान लोगों के चरित्र
निस्संदेह मुसलमान, इसाइयों से उच्च चरित्र वाले थे, इसी प्रकार वे अपने इतिहास की अधिक पंजिकृत्ति करने वाले और असहायों की अधिक सहायता करने वाले थे। अपने इतिहास में मुसलमानों ने बहुत ही कम निर्दयता का व्यवहार किया है। जिस प्रकार इसाइयों ने वर्ष 1099 में जेरूसलाम पर विजेता प्राप्त करने के बाद किया था।