राषिद हालांकि अपनी समय पर पहुँच चुका था। मगर उसने देखा माइकल उसकी प्रतिक्षा में केफे पर बैठा हुवा था, बल्कि माइकल ने तो उसके लिए जलपान का भी प्रबंध कर दिया था, राषिद ने उसका स्वागत किया और अपनी कुर्सी पर बैठ गया ....
माइकलः मैं ने तो तुम्हारा मन मोहक पेय मंगवा लिया है। नींबू वाली चाय ... मैं ने यह अनुमान कर लिया कि तुम अपना मन मोहक पेय ही सेवन करोगे।
राषिदः अच्छा स्वागत है। निश्चय वास्तविक रूप से यही पेय मेरा मन मोहक है। लेकिन मैं इस में बदलाव पसंद करता हूँ, यहाँ तक कि मै कभी- कभी कम दर्जे की पसंद का भी उपयोग कर लेता हूँ .. मेरा विचार है कि साधारण रूप से मानव का यही स्वभाव है।
माइकलः मै तुम से सहमत हूँ । लेकिन इस विषय को छोडो। हम अपने विषय के प्रति बात करते हैं ... क्षमा चाहता हूँ । क्या मै तुम्हारे लिए कोई दूसरा पेय पदार्थ मंगवाऊँ ?
राषिदः नही नही । आपका शुक्रिया.... ऐसे लगता है कि तुम चर्चा के लिए बहुत ही अधिक उत्तेजित हो ।
माइकलः ऐसी कोई बात नही। लेकिन पिछली बैठक के समान आज भी हमारा समय अन्य विषयों में समाप्त न हो जाय।
राषिदः फिर तो प्रारंभ करो।
माइकलः जैसा कि मैं ने पिछली बैठक में तुम से कहा था कि मैं एक ऐसे विषय में तुमसे चर्चा करना चाहता हूँ, जिसके प्रति मेरा यह विचार है कि तुम मेरी दृष्टि से सहमत रहोगे। हालांकि मुझे यह ज्ञात है कि तुम्हारी संस्कृति में इस दृष्टिकोण के विपरीत सिद्धांत पाये जाते है।
राषिदः बहुत अच्छे। मै तुम्हारा विरोध करना नही चाहता हूँ। तुम्हारे साथ चर्चा करने का लक्ष्य हमारे बीच आपसी अग्रिम, या कम से कम हम में से हर एक कि दृष्टि कोण को सही समझने का प्रयास है... तो बताओ वह विषय क्या है?
माइकलः कम शब्दों में विषय यह है कि वैवाहिक संबंध पती पत्नि दोनों कि ओर से एकत्व हो। अधिकतर विवरण करते हुए मैं यह कहना चाहता हूँ कि इस्लाम धर्म में अनेक पत्नियों को रखने कि पद्धती में स्त्री पर एक प्रकार का अन्याय है... क्या तुम मेरी इस बात से सहमत नही हो?।
राषिदः तुम किस स्त्री के प्रति बात कर रहे हो।
माइकलः (आश्चर्यजनक होकर) – स्त्री। पत्नी।... क्या वैवाहिक संबंध में कोई और स्त्री भी है?।
राषिदः जैसा कि पहले से ही हम इस बात पर सहमत हैं कि हर विषय में सही चर्चा ऐसे समग्र ढांचे के भीतर हो, जिसमे सारी समस्याएँ जुड़ जाती हों, और हर दिशा से उसमें विचार किया जाता हो।
माइकलः ठीक है। लेकिन इसका हमारे विषय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
राषिदः प्रभाव यह है कि जब हम इस विषय में चर्चा करें, तो इस बात की आवश्यक्ता है कि हम स्त्री के हितों पर सारी स्त्रियों को सामने रखते हुए विचार करें, सारी संस्कृति के हितों का ध्यान रखे, बल्कि पुरुष के हितों पर भी ध्यान दें, और पुरुष और स्त्री के बीच स्थिर अंतरों को भी ध्यान में रखें ।
माइकल (बात काटते हुए)- यह देखो उसी अन्याय कि जड़ तक हम पहुँच गये, जिसके बारे मे मै बात कर रहा था। वास्तविक रूप से तुम्हारे यहाँ स्त्री पर अन्याय हो रहा है। पुरुष और स्त्री के बीच अंतर। तुम जिस अंतर का दावा कर रहे हो, यह तो केवल स्त्रीयों का शोषण और उनसे आनंदित होने के लिए पूर्वी पितृसत्तात्मक संस्कृति के द्वारा बनाये गये नियम है... यह अंतर क्या है ? स्त्री को एक से ज्यादा पुरुष से विवाह करने का अधिकार क्यों नही है ? क्या यह इस संस्कृति में पुरुषों कि हवस का प्रमाण नही है?।
राषिदः ऐ मेरे मित्र धैर्य से काम लो... तुम ने तो मेरे सामने प्रश्नों का विखंडन बम डाल दिया। इसका उपयोग वाद-विवाद के नियमों के विरुद्ध है। हमारे लिए एक ही समय में इन सारी समस्याओं का सामना करना संभव नही है। हम प्रत्येक समस्या पर अवश्य चर्चा करेंगें। लेकिन पहले हमें इस बम को अलग अलग करने दो। सबसे पहले हम उसी विषय कि बात करेंगे, जिससे तुम्हे क्रोध आगयाः क्या तुम पुरुष और स्त्री के बीच अंतरों को नही मानते?
माइकलः यह कौन से अंतर है?
राषिदः सब से पहले जैविक अंतर। पुरूषों और स्त्रियों के शारीरिक स्वभाव में स्थिर जैविक अंतर
माइकलः निश्चित रूप से जैविक अंतर तो हैं। लेकिन हमारी चर्चा का इन अंतरों से क्या संबंध?।
राषिदः जिस धर्म का अनुसरण करना और उससे संतुष्ट रहना मेरा सिद्धांत है, मेरे उस धर्म कि दृष्टिकोण से मैं तुम्हारे साथ चर्चा नही करूँगा । परन्तु मै उसी बुद्धि और ज्ञान कि दृष्टिकोण से बात करूँगा, जिस के प्रति तुम ने पहले ही यह बता दिया कि तुम उस पर विश्वास रखते हो... सुनो मेरे मित्र ।
कुछ समय पहले किये गये वैज्ञानिक अध्ययन से यह साबित होता है कि पुरुष के भीतर स्थिर प्रेम का रसायन (स्वभाव) स्त्री के भीतर स्थिर रसायन से अलग है। इसी कारण अन्य शोध संस्थाओं ने गंभीर रूप से पुरूष और स्त्री के भीतर स्थिर प्रेम के स्वभाव का अंतर जानने का प्रयास किया। शोध वैज्ञानिकों को अद्भुत परिणाम प्राप्त हुए कि पुरूष के जीन संबंधों में विविधता उत्पन्न करते है। जब कि स्त्री के जीन संबंधों में स्थिरता और एकत्व पैदा करते हैं। वास्तविक रूप से आधुनिक विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि अन्य स्त्रियों में से किसी भी स्त्री से अपने प्रेम की भावनाओं में बिना किसी कमी के पुरुष अनेक स्त्रियों के साथ प्रेम करने की क्षमता रखता है।
सी.यन.यन. टी.वी. चैनल ने यूटा अमेरिकि राज्य कि विश्वविद्यालय के मनो वैज्ञानिक प्रोफेसर लीज़ा डैमोंड की बातें विवरण करते हुए यह कहा कि कई ऐसे जैविक प्रमाण है, जिससे यह साबित होता है कि पुरुषों में स्थिर यौन संबंधों की विविधता उनके शारीरिक रचनाओं के कारण पैदा होती है।
2007 में किये जाने वाले अपने रिसर्च में इंग्लैंड के आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय कि शोधकर्ता टीम ने इस बात का संकेत किया कि स्त्रियाँ पूर्ण रूप से पुरुषों के विपरीत है। स्त्री का अधिकतर ध्यान अपने शरीर और संतान पर होता है। इसका कारण यह है कि स्त्री में हार्मोन xtosen होता है, जिस से उनका संबंध अपने बच्चों से ज़्यादा हो जाता है।
कुछ नये रिसर्च इस बात का संकेत करते हैं कि स्त्री के मस्तिष्क से पुरुष का मस्तिष्क लगभग दिगुना है। शायद इन दोनों के मस्तिष्कों के बीच पाये जाने वाले इस अंतर का कारण यह है कि स्त्री के भीतर पायी जानी वाली यौन-इच्छा से पुरुष की यौन इच्छा लगभग तिगुना है।
मेरे मित्र, क्या इन अंतरों का वास्तविक रूप में कोई प्रभाव नही होगा ?
माइकलः अगर यह ज्ञात सही हो तो इसका प्रभाव अवश्य होगा ।
राषिदः तो फिर तुमने पुरुष की जिस हवस और उसके वैवाहिक संबंधों में विविधता की बात की है, इसका इस्लाम धर्म से या पूर्वी संस्कृति से कोई संबंध नही है... मै तुम से एक प्रश्न करता हूँ। मुझे आशा है कि तुम अपने स्वभाव अनुसार ईमानदारी से इस प्रश्न का उत्तर दोगे। तुम्हारे कितने ऐसे मित्र और बन्धु हैं, जिनके अनेक स्त्रियों से संबंध नही है ? मै तुम्हारे संबंधों कि बात नही कर रहा हूँ।
माइकलः अगर तुम मेरे संबंधों की बात करो, तो भी कुछ बुरा नही। क्योंकि हमारी संस्कृति में यह एक साधारण बात है... लेकिन यह संबंध ब्याह के नाम पर नही होते हैं ।
राषिदः तो फिर जिस बात का तुम हमारी संस्कृति पर आरोप लगा रहे हो, वही बात एक बडे अंतर के साथ तुम्हारी संस्कृति में उपलब्ध है। मै विस्तार से तुम्हारे सामने इसकी चर्चा करूँगा ।
मै इस से भी आगे बडकर तुम से यह कहता हूँ कि इस्लाम धर्म ने बहु विवाह की रीति कोई नई नही बनाया है। पूर्व काल कि सारी सभ्यताओं में बहु विवाह एक साधारण रीति थी, और पुरुष के लिए पत्नियों कि कोई निर्धारित संख्या नही थी। इसी प्रकार सारे देवत्व धर्मों में बहु विवाह विख्यात था। ज्यूष (यहूदी) धर्म में मध्यकाल तक बहु विवाह कि अनुमति थी। यहाँ तक कि पोप गुर्शूम इष्किनाज़ी (960-1040 A.C.) ने बहु विवाह के अवैध होने का प्रचार किया। जहाँ तक ईसाई संस्कृति कि बात है, वे 17 वीं शाताब्दी के बाद ही बहु विवाह को अवैध मानने लगे। और आज तक कुछ ईसाई संस्कृतियों, जैसे मोरमोन नामक समुदाय में बहु विवाह की अनुमति है।
माइकलः यह तो पूर्व काल की बात थी। अब तो मानव प्रगति और सभ्यता की ओर पदोन्नत प्राप्त कर लिया है।
राषिदः सभ्यतागत पदोन्नति की प्रगति का अर्थ मानवीय प्रकृति से टकराऊ, उसकी आवश्यकताएँ पूरी न करना, और मानवीय हितों की सीमाओं को पार करना नही है। परन्तु यह नही कहा जा सकता कि पूर्व काल के मनुष्य पशु-पक्षियों का मांस खाया करते थे, या भेड के ऊन का उपयोग करते थे, और आज कल मांस खाना या ऊन का उपयोग करना नीच या निम्न दर्जे का स्वभाव होगा.... लेकिन यह कहना संभव है कि मानवीय सभ्यतागत प्रगति इन व्यवहार में अधिक विकास ला सकती है, ताकि मानवीय आवश्यकताओं को बडी मात्रा में पूरी करे, और मानव कि हितों को अधिक आश्वासन दे.... यही वह संदेश है जो इस्लाम धर्म अपने साथ लाया है।
माइकलः कैसे ?
राषिदः तुम कहते हो कि वैवाहिक संबंध की रूपरेखा के बाहर यौन या प्रेम पूर्ण संबंध रखना तुम्हारी पश्चिमी संस्कृति में एक साधारण बात है। वास्तव में स्त्री के प्रति यही अन्याय है, और संस्कृति के लिए यही नष्ट दायक है। यह संबंध मानसिक स्थिरता के विपरीत है। अधिकारों का आश्वासक नही है, और न स्वस्थ समाज बनाता है। प्राचीन संस्कृतियों में बहु विवाह का कोई नियम नही था, तो इस्लाम ने वह नियम प्रस्तुत किया। स्त्री के साथ न्याय करते हुए उसकी आवश्यकताओं को पूर्ण किया। वैवाहिक संबंध मे उसको क़ानूनी भागीदार ठहराया, और इस सामाजिक समिति (मेरा अर्थ परिवार है) की सफलता के लिए बडी मात्रा में आश्वासन देते हुए इस वैवाहिक संबंध के लिए कई नियम और शर्त रखा ।
इस्लाम ने प्रत्येक स्त्रि के हितों का ख्याल रखा, और पुरुष की हवस को आज़ाद छोडने व बंदी बनाये रखने में संतुलन रखा। यह सब इस्लाम ने सामाजिक समिति के भीतर सीमित किया। जब कि तुम्हारे देशों मे सामाजिक समिति अधिक पराकाष्ठ पर पहुँच गयी है .... मेरा अर्थ परिवार है ....
माइकलः लेकिन जन संख्या से तो यह ज्ञात होता है कि पुरुष जन्मों का अनुपात स्त्री जन्मों के अनुपात के लगभग बराबर है। जब बहु विवाह के नियम को हम लागू करेंगें, तो कुछ पुरुषों के लिए पत्नियाँ नही रहेंगी। यह भी एक बडी गंभीर समस्या है।
राषिदः जब जन संख्या से यह बात ज्ञात होती है, तो निश्चय उससे यह बात भी मालूम होती है कि स्त्रियों के उम्र की दर पुरुषों की दर से ऊँची है। पश्चिमी संसार में पुरुष औसत रूप में स्त्रियों से 7 साल कम जीते हैं। और यह अंतर पिछली शताब्दी से लगातार बड़ रहा है। उदाहरण के रूप में, जर्मनी के अंदर स्त्री की औसत आयु 80 वर्ष है, जब कि पुरुष की औसत आयु 70 वर्ष है। यह अंतर 1900 (A.C.) में केवल 2 वर्षों का था ।
अमेरिका कि मिचिगन यूनिवर्सिटि के प्रोफेसर डानियल क्रोज़र कहते हैं कि संसार के अधिकतर देशों मे स्त्री के मुक़ाबले में पुरुष कम जीते हैं.... प्रोफेसर क्रोज़र यह भी कहते हैं किः इस अंतर का एक कारण यह है कि पुरुष और स्त्री के हार्मोन अलग-अलग हैं, और पुरुष के हार्मोन रक्त प्रवाह व हृदय रोग का कारण बनने वाले जीन को उत्तेजित करते हैं।
इसके साथ-साथ दंगे फसादों से पीडित देशों में होने वाले युद्ध के कारण मृत्यु की आशंका। गंभीर ब संकट पेशे में अपने प्राण को जोखम में डालना। इसके अतिरिक्त अन्य सामाजिक घटनाएँ जैसे सडक दुर्घटनाएँ... इन सब घटनाओं से कई हज़ार लोग पीडित है। इन में से अधिकतर पुरुष ही हैं.....
यानी विभिन्न समुदायों में स्त्री का अनुपात पुरुष से अधिक है। यह एक वास्तविक सच्चाई है, जिसकी अधिकतर देशों कि जन संख्या पुष्टि करती है। साथ-साथ यह बात भी है कि विधवाओं और तलाक़ वाली स्त्रियों की संख्य बढती जा रही है...
तो क्या कन्या लडकियों को मानसिक, सामाजिक और चारित्रिक समस्याओं से पीडित छोड दिया जाये? या समुदाय के स्वस्थ और स्वयं इन कन्याओं पर प्रतिकूल प्रभाव के डर से उन्हें अपनी इच्छाएँ पूरी करने और अपने अधिकारों को मांगते हुए फिरने दिया जाय? या किसी भी दल पर दबाव व अन्याय के बिना न्याय के भीतर आश्वासन देने वाले, और मानवीय परिस्थितियों व क्षमताओं का ध्यान रखने वाले नियमित पद्धतियों के द्वारा ऐसी सामाजिक प्रणाली बनायी जाय, जो प्रत्येक (पुरुष व स्त्री) कि आवश्यकताएँ पूरी करे? ।
फ्रान्स के समाज शास्त्री डाक्टर गोस्ताव लोबोन ने इस बात का उत्तर देते हुए यह कहा कि बहु विवाह की पूर्ति (यानी इस्लामिक) प्रणाली उत्तम है, जो इस प्रणाली के अनुयायियों के बीच नैतिकता को बढाती है, परिवार को संयुक्त बनाती है, और स्त्री को वह सम्मान व प्रसन्नता देती है, जो तुम पश्चिम में नही देखोगे ।
मुझे एक कप नींबू पानी और एक कप चाय पीने दो ।