पवित्र ख़ुरआन के हर सुरे (भाग) में ईशवर के दो नामः कृपाशील और अत्यन्त दयावान का विवरण है। ईशवर ने अपने ऊपर दयालुता को अनिवार्य करलिया है। तुम्हारे रब ने दयालुता को अपने ऊपर अनिवार्य करलिया है। (अल-अनआम, 54)
ईशवर कि दयालुता हर चीज़ को अपने अन्दर ले रखा है। किन्तु मेरी दयालुता से हर चीज़ आच्छादित है। (अल-आराफ़, 156)
ईशवर ने लोगों को अपनी दयालुता कि आशा रखने पर उत्साहित किया। उन्हें दयालुता कि शुभ सूचना दी और निराशा न होने का आदेश दिया । कह दो, ऐ मेरे बन्दों, जिन्होंने अपने आप पर ज़्यादती की है, अल्लाह कि दयालुता से निराश न हों। निस्संदेह अल्लाह सारे ही गुनाहों को क्षमा करदेता है। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील अत्यन्त दयावान है। (अल-ज़ूमर, 53)
ईशवर दयावान है, जो क्षमा करना पसंद करता है। उसने कहाः ईशवर रात के समय अपने हात फ़ैलाता है, ताकि दिन के समय पाप करने वाले की तौबा खुबूल करे। दिन के समय अपने हात फ़ैलाता है, ताकि रात के समय पाप करने वाले को क्षमा करे। ( ईशवर इसी प्रकार करता रहेगा) यहाँ तक कि सूर्य पूर्व से निकले। (इस हदीस को इमाम मुस्लिम ने वर्णन किया है) रसूल ने ईशवर कि ओर से यह बात कही किः निश्चय ईशवर ने ब्रह्माण्ड की सृष्टी से पहले यह लिख दिया है कि मेरी दयालुता, मेरे क्रोध से आगे है। (इस हदीस पर इमाम बुखारी और इमाम मुस्लिम सहमत है) रसूल ने ईशवर कि दयालुता के बारे में यह भी कहाः ईशवर ने दयालुता के 100 भाग बनाये। 99 भाग अपने पास रखलिया। 1 भाग धरती पर उतारा। इसी एक भाग के कारण सारे प्राणी एक दूसरे पर दया करते हैं। यहाँ तक कि घोडा अपने बच्चे के ऊपर से पंजा उठा लेता है, इस डर से कहीं बच्चा घायल ना होजाए। (बुख़ारी) ईशवर ने अपने रसूल मुहम्मद को सारे संसार के लिये दयालुता बनाकर भेजा। हमने तुम्हें सारे संसार के लिये सर्वथा दयालुता बनाकर भेजा है। (अल-अंबिया, 107)
ईशवर ने अपने रसूल को उच्च नैतिकता से सुन्दर बनाया। ईशवर ने कहा। निस्संदेह तुम एक महान नैतिकता के शिखर पर हो। (अल-क़लम, 4)
इसी कारण रसूल के चरित्र का सबसे प्रमुख भाग दयालुता है। अगर आप दयालु ना होते, तो लोग आप के पास से छँट जाते। ईशवर ने कहा। (तुमने तो अपनी दयालुता से उन्हें क्षमा करदिया) तो अल्लाह कि ओर से ही बड़ी दयालुता है जिसके कारण तुम उनके लिए नर्म रहे हो, यदि कहीं तुम स्वभाव के क्रूर और कठोर ह्रदय होते तो ये सब तुम्हारे पास से छँट जाते। (अले-इमरान, 159)
बल्कि वह अत्यन्त करुणामय, दयावान है। आपने अपनी समूह के लिये किसी प्रकार का कष्ट नही चाहा। ईशवर ने कहा। तुम्हारे पास तुम्ही में से एक रसूल आ गया है। तुम्हारा मुश्किल में पड़ना उसके लिये असहाय है। वह तुम्हारे लिए लालायित है। वह मोमिनों के प्रति अत्यन्त करुणामय, दयावान है। (अल-तौबा, 128)
इसी कारण इस्लाम धर्म, जो कृपाशाली ईशवर कि ओर से आया है। इस धर्म को दयावान रसूल द्वारा ज़ुल्म, अन्याय, घृणा कि अप्रसन्नता से, कष्ट, दुख और बेचैनी कि दुविधा से, और अत्याचार, कठोरता के मार्ग से मानवता को दूर रखने के लिए इस्लाम सांसारिक दयालुता बनकर आया । हमने तुम्हें सारे संसार के लिए सर्वथा दयालुता बनाकर भेजा है। (अल-अंबिया, 107)
सारे मुस्लिमों और ग़ैर मुस्लिमों (काफ़िर) के लिए दयालुता। आज्ञाकारी और ज़िद्दी के लिए दयालुता। बडे और छोटे के लिए दयालुता। पुरुष, स्त्री और बालक के लिए दयालुता। धनी और निर्धनी के लिए दयालुता। सारे संसार के लिए इस्लाम दयालुता बनकर आया है। इसी लिए इस्लाम दया कि इच्छा रखने और आपस में एक दुसरे के साथ दया करने का आदेश लेकर आया है। ईशवर ने कहा। फिर यह कि इन सबके साथ वह उन लोगों में से हो जो ईमान लाये और जिन्होंने एक-दूसरे को धैर्य की ताकीद की और एक-दूसरे को दया कि ताकीद की। (अल-बलद, 17)
रसूल ने कहाः ईशवर उस व्यक्ति पर दया नही करता जो लोगों पर दयावान ना हो। (इस हदीस के प्रति इमाम बुख़ारी और इमाम मुस्लिम सहमत है) आपने कहा दया करने वाले लोगों पर अत्यंत दयावान दया करता है। तुम धरती वालों पर दया करो, आकाश वाला तुम पर दया करेगा। दयालुता, दयावान ईशवर कि डोरी है। जो इसको मिलाए रखे, ईशवर उसको मिलाये रखेगा। और जो इस डोरी को काट दे, ईशवर उसको काट देगा। (इस हदीस को इमाम तिर्मिज़ी ने वर्णन किया है) रसूल ने कहाः दयालुता बुरे व्यक्ति के मन ही से खींच ली जाती है। (इस हदीस को इमाम तिर्मिज़ी ने वर्णन किया है) ईशवर ने दया करने का आदेश दिया। साधारण रूप से जीवन की शैली, मार्ग और चरित्र में दयालुता अपनाने का आदेश दिया। इस्लामिक शरिअत ने दयालुता के कुछ विशेष भागों कि ताकीद की है। जिन में से कुछ भाग यह है।
सारी मानवता के साथ दयालुताः ईशवर के रसूल अपने सारे समूह के लिये दयालु थे। आप के द्वारा ईशवर ने सारे लोगों को अन्धेरों से प्रकाश कि ओर, अप्रसन्नता से प्रसन्नता कि ओर ले आया। रसूल कि दया इस से भी कई अधिक थी। आपने तो उन काफ़िरों पर भी दया करने का प्रेरित बनाया, जो इस्लाम नही लाये। रसूल ने मक्काः के वासियों में से इस्लाम ना लाने वालों के बारे में यह कहा... बल्कि मेरी आशा है ईशवर उनकी संतान में किसी ऐसे व्यक्ति को पैदा करदे, जो एक ईशवर की प्रार्थना करे। किसी को उसका साझी न बनाये। (इस हदीस को इमाम बुखारी और इमाम मुस्लिम ने वर्णन किया है) जब रसूल “उहद” के युद्ध में घायल हो गये, तो आप के साथियों ने आप से यह कहाः काफ़िरों को श्राप दें, तो आपने कहाः ऐ मेरे प्रभु मेरे समूह के लोगों का मार्गदर्शन कर, वे अज्ञानी है। एक दसरी हदीस में आया कि ईशवर के रसूल से यह कहा गयाः काफ़िरों को श्राप दें, तो आपने कहा मुझे लहानत करने वाला नही, बल्कि दयालुता बनाकर भेजा गया। (सही मुस्लिम)
छोटों के साथ दयालुताः रसूल के एक सहाबी (साथी) कहते है, हम रसूल के साथ उनके पुत्र इब्राहीम के पास उस समय प्रवेश किया, जबकि इब्राहीम अपने जीवन कि अंतिम सान्स ले रहे थे। तो रसूल कि आँखों से आँसु टपकने लगे। तो अब्दुर-रहमान इब्ने औफ़ ने कहाः आप भी ऐ ईशवर के रसूल ? तो रसूल ने कहाः ए इब्ने औफ़, यह दयालुता है। फिर आपने कहाः निस्संदेह आँसु टपकते हैं, दिल दुखी होता है। फिर भी हम वही कहेंगे जिससे हमारा ईशवर ख़ुश होता है। ए इब्राहीम तेरी जुदाई से हम बहुत दुखी हैं। (इस हदीस को इमाम बुख़ारी और इमाम मुस्लिम ने वर्णन किया है।) बल्कि रसूल अपनी एक जांघ पर उसामा को और दूसरी जांघ पर हसन को बिठाया करते थे। फिर उन दोनों को मिलाते थे और यह कहते थेः ए ईशवर इन दोनों पर दया कर। मैं भी इन पर दया करता हुँ। जब एक व्यक्ति रसूल के पास आया और देखा कि आप हसन या हुसैन को चूम रहे हैं, तो उसने कहा क्या आप लोग अपनी औलाद को चूम्ते हो। मुझे दस लडके हैं, मैंने इन में से कभी किसी को नही चूमा। तो रसूल ने कहाः जो दया नही करता, उस के साथ दया नही की जायेगी।
कम्ज़ोरों के साथ दयालुताः रसूल ने उस काली स्त्री को नही देखा, जो मस्जिद कि सफ़ाई करती थी। आपने उसके बारे में प्रश्न किया तो लोगों ने कहा उसका देहान्त हो गया। आपने कहाः तुम लोगों ने मुझे कयों नही बताया... मुझे उसकी ख़बर (समाधि) के पास ले जाओ। तो लोगों ने आप को ख़बर का पता बताया। आपने उसके लिए प्रार्थना कि। (इस हदीस को इमाम बुखारी और इमाम मुस्लिम ने वर्णन किया है) रसूल के सेवक अनस बिन मालिक कहते हैः मैने रसूल कि दस साल सेवा की। आपने कभी मुझे “ उफ़ ” तक नही कहा। न यह कहा कि मैने यह काम क्यों किया और वह काम क्यों नही किया। (बुखारी) बल्कि महान सहाबी इब्न-मसूद ने कहाः मैं अपने एक ग़ुलाम (सेवक) को मार रहा था। पीछे से मुझे एक आवाज़ आयी ए इब्ने-मसूद इस सेवक पर तुम्हारी क्षमता से अधिक क्षमता ईशवर तुम पर रखता है। मैंने पीछे मुड़ कर देखा, तो वह रसूल कि आवाज़ थी। मैंने कहाः ए रसूल ईशवर के लिये मैं इस सेवक को मुक्ति देता हूँ। आपने कहा अगर तुम यह काम न करते, तो नर्क कि आग तुम्हें खालेती। (मुस्लिम)
पशु-पक्षियों के साथ दयालुताः रसूल का गुज़र ऐसे ऊँट के पास से हुआ, जिसका पेट, पीट से मिल गया था। तो आपने कहाः इन गूंघे पशु-पक्षियों के प्रति ईशवर से डरो। इन के स्वस्थ होने के समय इन पर सवारी करो, और स्वस्थ होने के समय इनको खाओ। (अबु-दाऊद) एक बार ईशवर के रसूल ने अन्सारी सहाबी के बाग़ में प्रवेश किया। एक ऊँट खड़ा था। जब ऊँट रसूल को देखा तो तड़पने लगा। उसकी आँखों से आँसु बहने लगे। रसूल उसके पास पहुँचे, आँसु साफ़ किये, तो वह ख़ामोश हो गया। फिर आपने कहाः इस ऊँठ का मालिक कौन है। यह ऊँठ किसका है। एक अन्सारी युवक आया और कहा ऐ रसूल यह मेरा है। आपने कहा क्या तुम इस ऊँठ के प्रति ईशवर से डरते नही हो, जिसका तुम्हे ईशवर ने मालिक बनाया है, ऊँठ ने मुझ से शिकायत कि तुम इसको भूखा रखते हो और दण्ड देते हो। (अबु-दाऊद)
यह सारी बातें रसूल के सारे संसार के लिये दयालुता बनकर भेजे जाने का उदाहारण है। इस के अतिरिक्त इस्लाम धर्म में दयालुता के अधिकतर नमूने हैं। जिस से धर्म के इस मार्ग की महान्ता का विवरण होता है। लेकिन दयालुता का मतलब निरआदर और शर्म नही है, बल्कि यह सम्मानजनिक दयालुता है।