ब्रह्माण्ड, आकाश और पृथ्वी महान तो हैं, लेकिन ईश्वर ने हर विषय को मानव के लिये अनुयायी बनाया। और जो कुछ आसमानों में है, और जो कुछ ज़मीन में है सब को अपने (हुक्म) से तुम्हारे काम में लगा दिया। (अल् जासिया, 13)
यह सब कुछ मानव के सम्मान और सारी सृष्टि से मानव को महान बनाने के लिये किया गया। और हमने बनी आदम को इज़जत बख्शी और उन को जंगल और दरिया में सवारी दी, और पाकीज़ा रोज़ी अता की, और अपनी बहुत सी मख्लुखात पर फज़ीलत दी। (अल् इसरा, 70)
ईश्वर ने मानव की सृष्टि की और हमें आदम की सृष्टि और उसको सम्मान देने की कहानी सुनायी फिर शैतान के भटकाने के कारण आदम के जन्नत से ज़मीन पर उतरने की कहानी सुनायी। और हमी ने तुम्को (शुरु में मिट्टी से) पैदा किया, फिर सूरत शकल बनायी फिर फरिश्तों को हुक्म दिया कि आदम के आगो सजदा करो तो (सब ने) सजदा किया, लेकिन इब्लीस, कि वे सज्दा करने वालों में (शामील) न हुआ। (खुदा ने) फरमाया जब मै नें तुझको हुक्म दिया, तो किस चीज़ ने तुझे सज्दा करने से रोका। उसने कहा कि मैं इस से अफ्ज़ल हूँ। मुझे तू ने आग से पैदा किया है और इसे मिट्टी से बनाया है। फरमाया तू (बहिश्त से) उतर जा तुझे मुनासिब नहीं कि यहाँ घमण्ड करे। बस निकल जा, तू ज़लील है। उस ने कहा कि मुझे उस दिन तक मुहलत अता फरमा, जिस दिन लोग (कब्रोंसे) उठाये जायेंगे। फरमाया (अच्छा) तुझ को मुहलत दी जाती है। (फिर) शैतान ने कहा कि मुझे तो तू ने मल्ऊन किया ही है। मैं भी तेरे सीधे रास्ते पर उन (को गुमराह करने) के लिए बैठूँगा। फिर उनको आगे से और पीछे से और दाएँ से और बाएँ से (ग़रज हर तरफ से) आऊँगा। (और उनकी राह मारुंगा) और तू उनमें अक्सर को शुक्रगुज़ार नहीं पायेगा। (खुदा ने) फरमाया, निकल जा यहाँ से पाजी मर्दूद। जो लोग उन में से तेरी पैरवी करेंगे मै (उनको और तुझ को जहन्नम में डालकर) तुम सब से जहन्नम को भर दूँगा। और (हम ने) आदम (से कहा कि तुम और तुम्हारी) बीवी बहिश्त में रहो-सहो और जहाँ से चाहो (और जो चहो) खाओ, मगर इस पेड़ के बास न जाना वरना गुनाहगार हो जाओगे। तो शैतान दोनों को बहकाने लगा ताकि उन के सतर की चीज़े, जो उनसे छुपी थी खोल दे और कहने लगा कि तुम को तुम्हारे परवरदिगार ने पेड से सिर्फ इसिलए मना किया है कि तुम फरिश्ते न बन जाओ, या हमेशा जीते न रहो। और उनसे कसम खा कर कहा कि मै तो तुम्हारा भला चाहने वाला हूँ। ग़रज (मर्दूद ने) धोखा दे कर उन को (गुनाह की तरफ) खींच ही लिया, जब उन्होने उस पेड़ (के फल) को खा लिया, तो उनके सतर की चीज़ खुल गयी और वह बहिश्त से (पेड़ों के) पत्ते (तोड़-तोड़ कर) अपने ऊपर चिपकाने (और सतर छिपाने) लगे। तब उनके परवरदिगार ने उनको पुकारा कि क्या मैने तुमको इस पेड़ (के पास जाने) से मना नहीं किया था और बता नहीं दिया था कि शैतान तुम्हारा खुल्लम-खुल्ला दुश्मन है। दोनों कहने लगे कि परवरदिगार। हमने अपनी जानों पर जुल्म किया और अगर तू हमें नहीं बख्शेगा और हम पर रहम नही करेगा, तो हम तबाह हो जायेंगे। (खुदा ने) फरमाया, (तुम सब बहिश्त से) उतर जाओ। (अब से) तुम एक-दूसरे के दुश्मन हो, और
तुम्हारे लिये एक (खास) वख्त तक ज़मीन पर ठिकाना और (ज़िदगी का) सामान (कर दिया गया) है। (यानी) फरमाया कि उसी में तुम्हारा जीना होगा। और उसी में मरना, उसी में से (कियामत को जिंदा करके) निकाले जाओगे। (अल आराफ, 11-25) निश्चित रुप से ईश्वर ने मनुष्य को अच्छा रुप दिया है, फिर उसमें प्राण डाली, जिससे वह अच्छे रुप वाला मनुष्य बन गया, जो सुनता, देखता, चलता-फिरता और बात करता है। तो खुदा जो सबसे बेहतर बनाने वाला, बडा बर्कत वाला है। (अल मूमीनून, 14)
ईश्वर ने मनुष्य को हर वह बात सिखायी जिसका जानना उसके लिए अवश्य है, और मनुष्य में ऐसे लाभ और गुण रख दिये जो दूसरे किसी प्राणी में नहीं है जैसेः बुध्दि, ज्ञान, बोल चाल, रुप, अच्छी शक्ल, आदरणीय स्थान, उपयुक्त शरीर और सोंच विचार से ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता दी है। ईश्वर ने मनुष्य को नैतिकता और अच्छी आदतों की ओर मार्गदर्शन दिखाया। ईश्वर ने मनुष्य को सारी सृष्टि से ज्यादा सम्मान दिया, इस सम्मान की उपस्थिति स्त्री और पुरुष दोनों के लिए यह है किः ईश्वर ने ब्रह्माण्ड की सृष्टि के प्रारंभ ही से आदम को पैदा करते हुए मनुष्य को अपने ही हाथों से बनाया, अवश्य रुप से ऐसा सम्मान है जिससे बडा और कोई सम्मान नहीं। (खुदा ने) फरमाया कि ऐ इब्लीस जिस शख्स को मैं ने अपने हाथों से बनाया उस के आगे सज्दा करने से तुझे किस चीज़ ने मना किया। क्या तू घमंड में आ गया या ऊँचे दर्जे वालों में था? (स्वाद, 75)
ईश्वर ने मनुष्य को अच्छे रुप में बनाया है, ईश्वर ने कहा कि हमने इंसान को बहुत अच्छी सूरत में पैदा किया है। (अल तीन, 4)
ईश्वर ने यह भी कहा और उसी ने तुम्हारी सूरतें बनायी और सूरतें भी पाकीजा बनायी और उसी की तरफ (तुम्हें) लौट कर जाना है। (अल तग़ाबून, 3)
ईश्वर ने सारे मनुष्य के पिता आदम के सामने फरिश्तों को सजदा करने का आदेश देते हुए मनुष्य को सम्मान अता किया है। और जब हमने फरिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो, तो सबने सजदा किया मगर इब्लीस ने न किया। (अल इस्रा, 61)
ईश्वर ने मनुष्य को सम्मान दिया और उसको ज्ञान, सोंच-विचार, बुध्दि, कान आँख और दूसरी भावनाएँ अता की। ईश्वर ने कहा और खुदा ने ही तुमको तुम्हारी माँओ के पेट से पैदा किया कि तुम कुछ नही जातने थे और उसने तुम को कान और आँखे और दिल (ओर उनके अलावा) अंग दिए ताकि तुम शुक्र करो (अल नह्ल, 78)
ईश्वर ने मनुष्य में अपनी रुह (जान) डाली, जिसके कारण मनुष्य में आध्यात्मिक ऊँचाई पैदा हुई। ईश्वर ने कहाजब उस को दुरुस्त कर लूं और उसमें अपनी रुह फूंक दूं तो उस के आगे सज्दे में गिर पड़ना। (स्वाद, 72)
यह मनुष्य के लिए सबसे बडा सम्मान है, इसी कारण एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य को सम्मान देना ज़रुरी है, कैसे यह संभव है कि मनुष्य किसी ऐसे दूसरे मनुष्य पर ज़ुल्म करें जिसमें ईश्वर की रुह डाली गयी है? ईश्वर ने फरिश्ते और जिन्न (भूत) को छोडकर मनुष्य को ज़मीन पर अपना उत्तराधिकारी बनाया। ईश्नवर ने कहा और (वह वख्त याद करने के खाबिल है) जब तुम्हारे परवरदिगार ने फरिश्तों से फरमाया कि मै ज़मीन में (अपना) नायब बनाने वाला हूँ। उन्होनें कहा, क्या तू उसमें ऐसे शख्स को नायब बनाना चाहता है, जो खराबियाँ करें और कुश्त व खून करता फिरें और हम तेरी तारीफ के साथ तसबीह व तक़दीस करते रहते हैं। (खुदा ने) फरमाया, मैं वह बातें जानता हूँ जो तुम नहीं जानते। (अल बख़रा, 30)
यह बहुत बडा सम्मान है जिसको वह फरिश्तें भी प्राप्त न कर सकें जो ईश्वर के आदेशों को कभी तिरस्कार नहीं करते, और जो सदा ईश्वर की बडाई, प्रशंसा और श्रद्दा करते हैं।
ईश्वर ने आकाश, पृथ्वी और इन दोनों के बीच मौजूद चाँद, सूरज, तारे, ग्रह और आकाश गंगाओं को मनुष्य के लिए अनुयायी कर दिया। ईश्वर ने कहा और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन मे है, सब को अपने (हुक्म) से तुम्हारे काम में लगा दिया, जो लोग गौर करते हैं, उनके लिए उसमें (खुदा की खुदरत की) निशानियाँ हैं। (अल जासिया, 10)
ईश्वर ने मानव को और सारी मानवता को किसी भी प्राणी को बंधन (बंदगी) से मुक्ति दी है, चाहे उसकी महानता और उदारता कुछ भी हो, और इसमें मनुष्य के लिए स्वतंत्रता की आखरी बुलंदी है, परन्तु मनुष्य को मानव की पूजा और परतंत्रता से एक ईश्वर की पूजा की ओर अग्रसर किया। और एक ईश्वर की पूजा करना ईश्वर के अलावा अन्य की पूजा करने से बहुत बडी स्वतंत्रता है। इसी कारण ईश्वर ने अपने और अपने भक्तों के बीच किसी मध्य वर्ती को स्वीकार नहीं. किया। कुछ लोगों ने ईश्वर और मनुष्य के बीच ऐसे मध्य वर्ती बनालिये जिनको इन लोगों ने दिव्य गुणों से प्रभावित किया। जब कि ईश्वर ने मनुष्य को यह सम्मान दिया कि उसके और ईश्वर के बीच कोई मध्यवर्ती नहीं है। ईश्वर ने कहा इन्होंने अपने उलमा और मशाइख (बुज़ुर्गां) और मसीह इब्ने मरयम को अल्लाह के सिवा खुदा बना लिया, हालांकि उनको यह हुक्म दिया गया था कि एक खुदा के सिवा किसी की इबादत न करें। उसके सिवा कोई माबूद नहीं। और वह उन लोगों के शरीक मुक़रर करने से पाक है। (अल तौबा, 31)
सारे साधनों को अपनाते हुए भाग्य और नसीब पर विश्वास (ईमान) रखने का आदेश देते हुए मनुष्य को भविष्य के डर और चिंता, दुःख, परेशानी से मुक्तित दी है। भविष्य और नसीब पर विश्वास रखना मुसलमान मनुष्य को अम्न व आश्ती, इज्ज़त, आदरणीय जीवन का और अतीत मे गुज़री हुयी चीज़ों पर अफसोस या ग़म न करने का एहसास पैदा करता है। इसलिए कि यह सब ईश्वर की ओर से है। ईश्वर ने कहा कोई मुसीबत मुल्क पर और खुद तुम पर नहीं पडती, मगर इस से पहले की हम उसको पैदा करे, एक किताब में (लिखी हुई है), (और) यह (काम) खुदा को आसान है। (अल हदीद, 22)
यह विश्वास (ईमान) मनुष्य के अन्दर स्वयं संतुलन, स्थिरता और बहुत बडा संतोष पैदा करता है इस प्रकार के न उस पर कठिनाइयाँ प्रभाव डालती है और न उसके अंदर डर पैदा करती है, और इसी तरह खुशियाँ और नेमतें मनुष्य को घमंडी नहीं बनाती।
मनुष्य की बुध्दी का सम्मान ईश्वर ने अवश्य रुप से मनुष्य की बुध्दि और सोंच विचार की ताक़त को महान मूल्य दिया है, मनुष्य को विचार करने और दूसरों से सबक सीखने का ईश्वर ने आदेश दिया है आकाश और पृथ्वी की सृष्टि में विचार करने, और ज्ञान, बुद्दिमत्ता से सबूत इकट्ठा करने को आवश्यक माना है। ईश्वर ने कहा (इन काफिरों से) कहो कि देखो तो आसमानों और ज़मीन में क्या-क्या कुछ है, मगर जो लोग ईमान नहीं रखते, उनके निशानियाँ और डरावे कुछ काम नही आते। (यूनूस, 101)
ईश्वर ने बुध्दि को सम्मान देने, उसका ख्याल रखने, उसको काम में लाने, परंपराएँ, भेद-भाव और असहिष्णुता के माध्यम से बुध्दि को स्थिरान करने का आदेश दिया है। इसी प्रकार से बुध्दि को ईश्वर की उपस्थिति और उसके एक होने का सुबूत माना है। परन्तु ईश्वर ने आपसी संप्रदाय दूर करने के लिए बुध्दि को ओर अग्रसर होने का आदेश दिया। ईश्वर ने कहा (ऐ पैगंबर! इन से) कह दो कि अगर सच्चे होते दलील पेश करो (अल बख़रा, 111)
ईश्वर ने मिथक, धोखा, जादू, जिन्न (भूत प्रेत) से मदद लेने और इस प्रकार के दूसरे कामों से बुध्दि को दूर रखा है।
हर एक मनुष्य अपने आप का जिम्मेदार है, उसके कार्य का उससे हिसाब लिया जायेगा और दूसरे के कार्य से उसका कोई संबंध नहीं होगा। इसी बात की पुष्टि ईश्वर का यह आदेश करता है। और कोई उठानेवाला दूसरे का बोज न उठायेगा (फातीर, 18)
इस सम्मान से “खुरआन ए करीम” गलत विचारों को नज़र अंदाज़ करता है और मानवता को इन ग़लत विचारों के भारी परिणाम से मुक्ति देता है।
मानवता का सम्मान किसी एक लिंग के लिए विशेष नहीं है, लेकिन नियम यह है कि हर तरह के सम्मान और आदर में स्त्री पुरुष के समान है। और औरतों का हक़ (मर्दों पर) वैसे ही है जैसे दस्तूर के मुताबिक (मर्दों का) हक़ औरतों पर हैं। (अल बखरा, 228)
ईश्वर ने कहा और मोमिन मर्द और मोमिन औरतें एक दूसरे के दोस्त हैं। (अल तौबा, 71)
भविष्य जीवन में अपनी करतूतों का फल लेने में किसी भी प्रकार से स्त्री, पुरुष से अलग नहीं है। ईश्वर ने कहा तो उनके परवरदिगार ने उनकी दुआ खुबूल कर ली। (और फरमाया) कि मै किसी अमल करने वाले के अमल को, मर्द हो या औरत ज़ाया नहीं करता। तुम एक दूसरे की जिन्स हो (आल-इंम्रान, 195)
और ईश्वर ने कहा और जो नेक काम करेगे, मरुद हो औरत, और वो इमानवाला भी होगा, तो ऐसे लोग जन्नत में दाखिल होंगे, और उनका तिल बाराबर भी हख़ ना मारा जाएगा। (अल निसा, 124)
ईश्वर ने स्त्री को मानवता कि रुप में सम्मान दिया, इस प्रकार के उसको पुरुष के समान ज़िम्मेदार, आदेशों का पालन करनेवाली और इनाम और रज़ा का योग्यवान बनाया है। परन्तु मानवता के लिए लागू किया जाने वाला सबसे पहला आदेश पुरुष और स्त्री दोनों पर एक सा लागू था। इस प्रकार से कि ईश्वर ने सबसे पहले मानव आदम और उनकी बीवी से कहा और हम ने कहा कि ऐ आदम। तुम और तुम्हारी बीवी जन्नत में रहो और जहाँ से चाहो, बे रोक-टोक खाओ (पिओ), लेकिन उस पेड के पास न जाना, नहीं तो ज़ालिमों में (दाखिल) हो जाओगे।(अल बख़रा, 35)
इसी प्रकार से ईश्वर ने स्वर्ग से आदम के निकाले जाने, और आदम के बाद उनकी औलाद की दुर्भाग्य का जिम्मेदार स्त्री को नही ठहाराया, जैसा कि कुछ धर्मां में यह बात मानी जाती है परन्तु ईश्वर ने यह कहा कि आदम ही पहला जिम्मेदार है। और हमने पहले आदाम से वायदा लिया था, मगर वे (उसे) भूल गये और हमने उनमें सब्र व सबात न देखा (सूरः ताहा) और आदम ने अपने परवरदिगार के (हुक्म के) खिलाफ किया तो, (वे अपनी मंज़ील से) बे-राह हो गये। फिर उनके परवरदिगार ने उनको नवाजा तो उन पर मेहरबानी से तवज्जोह फरमायी और सीधी राह बतायी। (ताहा, 121-122)
इसी प्रकार से स्त्री और पुरुष मानवता में बराबर हैं। ईश्वर ने कहा लोगो! हम ने तुम को एक मर्द और एक औरत से पैदा किया, और तुम्हारी क़ौमें और क़बीले बनायें, ताकि एक-दूसरे की पहचान करो (और) खुदा के नज़दीक तुम में ज्यादा इज्जत वाला वह है, जो ज्यादा परहेजगार है। बेशक खुदा सब कुछ जाननेवाला (और) सब से खबरदार है। (अल हूजूरात, 13)\
इसी प्रकार से पुरुष और स्त्री निम्न लिखित बातों में संयुक्त और बराबर हैं
विशेष अधिकार में नागरिक होने के नाते ज़िम्मेदारीः- परन्तु स्त्री का नैतिक व्यक्तितत्व सम्मानजनक है, निश्चित रुप से ईश्वर ने स्त्री को फर्ज़ और पालन करने की योग्य में पुरुष के समान माना है, और स्त्री को खरीदने, बेचने और इस प्रकार के दूसरे तमामा व्यवहार करने और स्वभाव का अधिकार दिया है। यह तमाम व्यक्तित्व अधिकार, बिना किसी ऐसी पाबंदी के जो स्त्री की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करें, अनुसरणीय है लेकिन वह पाबंदी जिससे स्वयं मनुष्य अपने आप को प्रतिबंधित करे। ईश्वर ने कहा मर्दों को उन कामों का सवाब है, जो उन्होनें किया, औरतों को उन कामों का सवाब है जो उन्होंने किया (अल निसा, 32)
ईश्वर ने स्त्री को विरासत का अधिकार दिया है। ईश्वर ने कहा जो माल माँ-बाप और रिश्तेदार छोड़ मरे, थोडा-हो या बहुत, उसमें मर्दों का भी हिस्सा है और औरतों का भी। ये हिस्से (खुदा के) मुकरर किये हुए हैं। (अल निसा, 7)
स्त्री जब अच्छा करे या बुरा, उसकी स्थिति बिलकुल पुरुष के समान है। ईश्वर ने कहा और जो चोरी करे, मर्द हो या औरत, उनके हाथ काट डालो । ये उनके फलों की सजा और खुदा की तरफ से सीख है और खुदा जबरदस्त (और) हिकमत वाला है। (अल माइदा, 38)
भविष्य जीवन में मिलनेवाला बदला। ईश्वर ने कहा जो शख्स नेक अमल करेगा, मर्द हो या औरत और वह मोमिन भी होगा, तो हम उसको (दुनिया में) पाक (और आराम की) जिंदगी से जिंदा रखेंगे और (आखिरत में) उन के आमाल का निहायत अच्छा बदला देंगे। (अल नहल 97)
आपसी बंधन और हमदर्दी। ईशवर ने कहा मोमिन मर्द और मोमिन औरतें एक दूसरे के दोस्त हैं कि अच्छे काम करने को कहते और बुरी बातो से मना करते, और नमाज़ पढ़ते, और ज़कात देते और खुदा और उसके पैगंबर की इताअत करते हैं। यही लोग हैं, जिन पर खुदा रहम करेगा बेश्क खुदा ग़ालिब हिक्मत वाला है। (अल तौबा 71)
निश्चित रुप से स्त्रयों के साथ सहानुभूति और हमदर्दी करने का आदेश है। ईश्वर ने युध्दों में स्त्री की हत्या करने से मना किया, अस्वस्थ स्त्री के साथ खाना खाने और व्यवहार करने का आदोश दिया है। जब के यहूद स्त्री के साथ व्यवहार करने से रोकते थे उसको नीच समझते थे, उससे दूर रहा करते थे और उसके स्वस्थ होने तक उसके साथ खाना नहीं खाया करते थे। अल्लाह के रसूल (मुहम्मद) की ओर से सत्री को बहुत बडा सम्मान प्राप्त हुआ है, आप ने कहा कि “तुम में से सब से अच्छा वह व्यक्ति है जो अपने परिवार के साथ अच्छा हो, और मै अपने परिवार वालों के साथ अच्छा व्यवहार करता हूँ”। (इस हदीस को इमाम तिर्मिजि ने वर्णन किया है, और कहा कि यह हदीस “हसन” और “सहीह” है)।
जब आप के युग में स्त्री को मारा गया तो आप बहुत नाराज़ हुए, और कहा कि “तुम में से कोई अपनी बीवी को नौकरानी की तरह मारता है, और फिर रात में उसको अपने गले लगाता है” (इस हदीस को इमाम बुखारी ने वर्णन किया है)
और जब कुछ स्त्रियाँ अपनी पतियों की शिकायत लेकर अल्लाह के रसूल के पास पहुँची तो आपने कहा” निश्चित रुप से बहुत सी स्त्रियाँ अपने-अपने पति की शिकायत लेकर मुहम्मद के घर वालों के पास आयी हैं। ऐसे पुरुष तुम में से अच्छे लोग नहीं है। (इस हदीस को अबू दावूद ने वर्णन किया है)
अवश्य रुप से स्त्री को वह अधिकार दिये गये है, जो पुरुष को नहीं दिये गये। ईश्वर ने पिता से ज्यादा माता का सम्मान करने का आदेश दिया है। एक बार एक व्यक्तित अल्लाह के नबी के पास आया और कहने लगा ऐ अल्लाह के रसूल लोगों में कौन सब से अधिक मेरे अच्छे व्यवहार का हक़दार है? (और एक दूसरे वर्णन में आया है कि लोगों में कौन मेरी अच्छाइयों का अधिक हक़! रखता है?) तो आपने कहा तुम्हारी माँ। उस व्यक्ति ने कहा फिर इसके बाद कौन ज्यादा हक़दार! है? तो आपने कहा तुम्हारी माँ। उस व्यक्ति ने कहा फिर कौन? तो आपने कहा तुम्हारी माँ। उस व्यक्ति ने कहा फिर कौन? तो आपने कहा तुम्हारे पिता (इस हदीस से “बुखारी” और “मुस्लिम” सहमत हैं)।
ईश्वर ने लड़कों के पालन-पोषण से ज्यादा लड़कियों के पालन-पोषण पर अधिक पुण्य रखा है। अल्लाह के रसूल ने कहा जिस व्यक्ति को लड़कियों के पालन-पोषण में कोई कष्ट हुआ हो, और वह इन लड़कियों के साथ अच्छा व्यवहार किया हो, तो ये लड़कियाँ उस व्यक्ति के लिए नरक की आग से मुक्ति का कारण होगी। (इस हदीस से “बुखारी” और “मुस्लिम” सहमत है)। अल्लाह के रसूल ने कहा ऐ अल्लाह मै दो कमज़ोर अनाथ और स्त्री के अधिकारों से आलोचनात्मक हूँ। (यह हदीस हसन है। इस को “निसाई” ने अच्छी सनद के साथ वर्णन किया है)